उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड में निकाय चुनाव से पहले राज्य में अतिक्रमण के मुद्दे पर सियासत गरमा गई है। दअरसल एनजीटी के आदेश के बाद देहरादून नगर निगम की ओर से मलिन बस्तियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी है। एनजीटी के निर्देश पर निगम की ओर से नदी के किनारे 27 बस्तियों का सर्वे कर 560 अतिक्रमण चिह्नित किए गए है। एनजीटी के इस आदेश के बाद निगम की ओर से सभी को नोटिस थमा दिए गये हैं। जिससे लोगों में काफी चिंता बढ़ गई है। वहीं एनजीटी में 13 मई को सुनवाई हुई जिसमें नगर आयुक्त गौरव कुमार ने अपना पक्ष रखा। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद एनजीटी ने नगर निगम को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जिन बस्तियों को आपने चिन्हित किया हैं उन्हें 30 जून तक हर हाल में हटाना होगा। एनजीटी ने नगर निगम से नदी के फ्लड जोन के बारे में भी जानकारी ली और फ्लड प्लेन जोन का चिह्नीकरण हर हाल में कराने को कहा है, वहीं अगली सुनवाई अब 24 जुलाई को होगी। आपको बता दें कि वर्ष 2016 के बाद किए गए निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की जानी है। मलिन बस्ती के संबंध में अध्यादेश लागू किए जाने के बाद नियमानुसार वर्ष 2016 के बाद के निर्माण अवैध माने गए हैं। जिनके खिलाफ अब ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जाएगी। वही निकाय चुनाव से पहले अतिक्रमण के खिलाफ होने जा रही कार्रवाई पर कांग्रेस ने सवाल खडे किए हैं…साथ ही सरकार के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन भी किया है। कांग्रेस ने भाजपा पर अतिक्रमण के नाम पर लोगों को डराकर चुनाव में इसका लाभ लेने का आरोप लगाया है। आपको बता दें कि उत्तराखंड में सौ नगर निकायों का पांच वर्ष का कार्यकाल पिछले साल दो दिसंबर को खत्म होने के बाद इन्हें प्रशासकों के हवाले कर दिया गया था। इन प्रशासकों का कार्यकाल भी जून में समाप्त हो रहा है…इससे पहले निकाय चुनाव की तैयारियां चल रही है। हांलाकि विपक्ष सरकार पर एक बार फिर निकाय चुनाव को टालने का आरोप भी लगा रहा है….सवाल ये है कि क्या निकाय चुनाव से पहले सरकार मलिन बस्तियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी, आखिर कबतक इन बस्तियों को पहले बसाया जाएगा, फिर इन्हें उजाडकर बेघर किया जाएगा..
राजधानी देहरादून में मलिन बस्तियों पर एक बार फिर ध्वस्तीकरण की तलवार लटक गई है। एनजीटी ने नदी नाले के किनारे हुए अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई के साफ निर्देश नगर निगम को दिए हैं। एनजीटी के आदेश के बाद वर्ष 2016 के बाद किए गए कब्जों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह का अल्टीमेटम दिया गया है। एनजीटी के निर्देश पर निगम की ओर से रिस्पना नदी के किनारे 27 बस्तियों का सर्वे कर 560 अतिक्रमण चिह्नित किए गए है। बता दें कि वर्ष 2016 के बाद किए गए निर्माण को चिह्नित किया गया। मलिन बस्ती के संबंध में अध्यादेश लागू किए जाने के बाद नियमानुसार वर्ष 2016 के बाद के निर्माण अवैध माने गए हैं। जिनके खिलाफ अब ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जाएगी। वहीं एनजीटी ने 30 जून तक हर हाल में कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं
वहीं निकाय चुनाव से पहले अतिक्रमण के खिलाफ होने जा रही कार्रवाई पर सियासत गरमा गई है। कांग्रेस ने इस कार्रवाई पर सवाल खडे किए हैं…साथ ही सरकार के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन भी किया है। कांग्रेस ने भाजपा पर अतिक्रमण के नाम पर लोगों को डराकर चुनाव में इसका लाभ लेने का आरोप लगाया है। आपको बता दें कि उत्तराखंड में सौ नगर निकायों का पांच वर्ष का कार्यकाल पिछले साल दो दिसंबर को खत्म होने के बाद इन्हें प्रशासकों के हवाले कर दिया गया था। इन प्रशासकों का कार्यकाल भी जून में समाप्त हो रहा है…इससे पहले निकाय चुनाव की तैयारियां चल रही है। हांलाकि विपक्ष सरकार पर एक बार फिर निकाय चुनाव को टालने का आरोप भी लगा रहा है….
कुल मिलाकर उत्तराखंड में निकाय चुनाव से पहले राज्य में अतिक्रमण के मुद्दे पर सियासत गरमा गई है। एक ओर जहां सरकार के सामने निकाय चुनाव कराने की चुनौती है तो वही दूसरी ओर चुनाव से पहले एनजीटी ने 30 जून तक हर हाल में अवैध अतिक्रमण के विरूद्ध कार्रवाई के आदेश दिए हैं। सवाल ये है कि क्या निकाय चुनाव से पहले धामी सरकार मलिन बस्तियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी, आखिर कबतक इन बस्तियों को पहले बसाया जाएगा, फिर इन्हें उजाडकर बेघर किया जाएगा….सवाल ये भी है कि क्या धामी सरकार समय पर निकाय चुनाव कराएगी