KNEWS DESK- राजस्थान के जयपुर में पिंजरापोल गौशाला होलिका दहन में गाय के गोबर से बने लट्ठों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे लकड़ी की भी कम जरूरत पड़ती है और गाय के गोबर का भी सही इस्तेमाल हो जाता है। आपको बता दें कि होलिका दहन में आमतौर पर लकड़ी, कंडों और दूसरी ज्वलनशील चीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
पिंजरापोल गौशाला प्रबंधक राधेश्याम विजयवर्गीय ने बताया कि श्री पिंजरापोल गौशाला, पिछले सात साल से गाय के गोबर के लट्ठे बना रही है। और ये निरंतर गाय माता की सेवा में अग्रसर है। बिना आर्थिक लाभ से इसको उपलब्ध कराती है। होलिका दहन में एक पेड़ बचता है कम से कम ऐसे ही जयपुर शहर में कम से कम हजारों जगह होलिका दहन गाय के गोबर के लट्ठों से हो रहा है।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि इन गोबर के लट्ठों की मांग इतनी ज्यादा है कि गौशाला प्रशासन पूरी नहीं कर पा रहा है।
पिंजरापोल गौशाला प्रबंधक राधेश्याम विजयवर्गीय ने बताया कि राजस्थान के बाहर भी पिंजरापोल गौशाला गाय के गोबर के लट्ठे निरंतर भेज रहे हैं। अभी वर्तमान में अहमदाबाद में सूरत और काशी विश्वनाथ में 20 टन लकड़ियां भेजी हैं और भी कई जगह का ऑर्डर आ रहे हैं। अभी साउथ का भी ऑर्डर आ रहा है। वहां पर भी अभी क्योंकि माल की कमी होने की वजह से हम ऑर्डर कंफर्म नहीं कर पा रहे हैं।
होली का त्योहार भक्त प्रह्लाद और होलिका की पारंपरिक कहानी की याद दिलाता है। राजा हिरण्यकश्यप के पुत्र भक्त प्रह्लाद अपने पिता के आदेश को दरकिनार कर भगवान विष्णु की पूजा करते थे। राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठने को कहा। होलिका को आग से नहीं जलने का वरदान मिला हुआ था। जब होलिका को जलाया गया तो नारायण की कृपा से भक्त प्रह्लाद तो बच गए लेकिन होलिका पूरी तरह से जल गई।
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