छापामारी, ना कर्मचारी, ना अधिकारी !

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, देवभूमि उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है। एक ओर जहां पर्वतीय क्षेत्रों में तीमारदार मरीजों को कंधे पर अस्पताल ले जाने को मजबूर हैं तो वहीं दूसरी ओर चिकित्सकों और मेडिकल स्टाफ की कमी परेशानी को और बढ़ा रही है। इतना ही नही अस्पतालों में मौजूद स्टाफ ना तो समय पर अस्पताल पहुंच रहा है और ना ही शाम को सेवाएँ दे रहा है। पहाड़ों में तो ये स्थिति और भी ज्यादा विकट है। खुद पौड़ी जिलाधिकारी के निरीक्षण में ये समस्या सामने आई. पौड़ी जिलाधिकारी आशीष चौहान जब थैलीसैंण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। तो उन्होने देखा की अस्पताल के कर्मचारी पूरे अस्पताल को बंद कर घर चले गये, इस दौरान ना तो चौकीदार मिला और ना एक भी कर्मचारी स्थिति ये हुई कि जिलाधिकारी को खुद ही अस्पताल का गेट खोलना पड़ा..वहीं ये समस्या पहाड़ों के साथ ही मैदानी क्षेत्रों में भी देखने को मिल रही है। दअरसल देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल अचानक ऋषिकेश के राजकीय चिकित्सालय पहुंच गये जहां उन्होने कर्मचारियों और अधिकारियों को नदारद पाया. स्थिति ये थी कि अस्पताल में 5 से 6 विशेषज्ञ डाक्टर होने के बाद भी एक भी विशेषज्ञ डाक्टर नहीं मिला. जिसके बाद जिलाधिकारी ने गैर हाजिर अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन रोकने के निर्देश दिये हैं। राज्य में स्थिति तब है जब धामी सरकार ने विशेषज्ञ डाक्टरों के वेतन को पांच लाख रुपए तक कर दिया है। वहीं धामी सरकार का कहना है कि वह लगातार स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के कार्यों में लगी है।   मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के तीन साल के कार्यकाल में राज्य में दो नए मेडिकल कॉलेज शुरू हो गए हैं। इसके अलावा भी मेडिकल स्टाफ की भर्ती की जा रही है। सवाल ये है कि इतना सब करने के बाद भी आखिर क्यों राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं आ रहा है।

उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली कम नहीं हो रही है। पहाड़ों से लेकर मैदानी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल है. पौड़ी और देहरादून के जिलाधिकारियों के निरीक्षण में भी स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खुली है। बता दें कि पौड़ी जिले के जिलाधिकारी आशीष चौहान जब थैलीसैंण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। तो उन्होने देखा की अस्पताल के कर्मचारी पूरे अस्पताल को बंद कर घर चले गये, इस दौरान ना तो चौकीदार मिला और ना एक भी कर्मचारी स्थिति ये हुई कि जिलाधिकारी को खुद ही अस्पताल का गेट खोलना पड़ा..वहीं जब देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल अचानक ऋषिकेश के राजकीय चिकित्सालय पहुंचे तो उन्होने कर्मचारियों और अधिकारियों को नदारद पाया. स्थिति ये थी कि अस्पताल में 5 से 6 विशेषज्ञ डाक्टर होने के बाद भी एक भी विशेषज्ञ डाक्टर नहीं मिला. जिसके बाद जिलाधिकारी ने गैर हाजिर अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन रोकने के निर्देश दिये हैं।

आपको बता दें कि उत्तराखँड में एक ओर जहां भौगोलिक परिस्थितियां मरीजों और तीमारदारों के सामने बड़ी चुनौती है तो उससे भी ज्यादा अस्पतालों में स्टाफ की कमी और अस्पतालों से गायब मेडिकल स्टाफ समस्या को और बढ़ा रहे हैं। हांलाकि सरकार दावा कर रही है कि प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं में पहले से काफी अच्छी स्थिति है…सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के तीन साल के कार्यकाल में राज्य में दो नए मेडिकल कॉलेज शुरू हो गए हैं। वहीं राज्य में अब स्वास्थ्य सेवाओँ के मुद्दे पर सियासत गरमा गई है।

कुल मिलाकर राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता. हांलाकि सरकार पहले से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं होने का दावा तो कर रही है लेकिन खुद सरकार के दावों की पोल जिलाधिकारियों के निरीक्षण में खुल गई है। सवाल ये है कि आखिर क्यों सरकारी कर्मचारी तमाम सुविधाओँ के बाद भी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी नहीं कर रहे हैं। आखिर क्यों राज्य के कर्मचारियों को कार्रवाई का डर नहीं है. देखना होगा कबतक राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होता है

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