संयुक्त संगठनों का विरोध जारी, आक्रोश भारी !

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, देशभर के 25 करोड़ से ज्यादा कर्मचारी कल देशव्यापी हड़ताल पर रहें। ये कर्मचारी बैंकिंग, बीमा, राजमार्ग निर्माण और कोयला खनन समेत अन्य कई क्षेत्रों में कार्यरत हैं। यह हड़ताल 10 ट्रेड यूनियन और उनकी सहयोगी इकाइयों द्वारा सरकार की मजदूर, किसान और राष्ट्र विरोधी नीतियों का विरोध करने के लिए बुलाई गई थी। जिससे कई जरूरी सेवाएं प्रभावित भी हुई। ट्रेड यूनियनों का कहना है कि हड़ताल कोई प्रदर्शन नहीं, बल्कि देश की नीतियों और श्रमिकों के अधिकारों पर सवाल उठाने की बड़ी कोशिश है. हड़ताल सफल रही है. इसका असर ना केवल सेवाओं पर पड़ेगा, बल्कि सरकार की नीतियों पर भी पड़ेगा। देशव्यापी हड़ताल के आह्वान पर उत्तराखंड संयुक्त ट्रेड यूनियंस संघर्ष समिति व अन्य स्वतंत्र फेडरेशनों द्वारा हड़ताल का व्यापक असर भी देखने को मिला। गांधी पार्क से जिला मुख्यालय तक विशाल रैली निकाल कर केंद्र व राज्य सरकार की नीतियों का विरोध किया।

देशभर में हुई राष्ट्रव्यापी एक दिवसीय हड़ताल का असर बुधवार को उत्तराखण्ड में भी देखने को मिला। अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस और सेंटर ऑफ इण्डियन ट्रेड यूनियन सीटू के नेतृत्व में स्थानीय मजदूरों, होटल कर्मचारियों, रेहड़ी-पटरी व्यवसायियों और महिला कामगारों ने प्रदेश की राजधानी देहरादून के परेड ग्राउण्ड से जिला प्रशासन तक पैदल मार्च कर प्रदर्शन किया। इस हड़ताल में सैकड़ों मजदूरों, महिलाओं, युवा कार्यकर्ताओं और समाज सेवियों ने भाग लिया। सभी ने मिलकर नारे लगाए। जिसमें उन्होने कहा कि श्रमिकों का शोषण नहीं चलेगा हमारा हक़ है, कोई एहसान नहीं, महंगाई पर रोक लगाओ, मजदूरों को न्याय दिलाओ. उन्होंने कहा कि बीजेपी की केंद्र सरकार द्वारा देश भर के मजदूर के खिलाफ षडयंत्र कर उनके अधिकारों से खेला जा रहा है जिसको किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हड़ताल का मकसद देशभर में श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और भाजपा की सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों का विरोध किया गया। इस मौके पर विभिन्न मजदूरों को लेकर राष्ट्रपति को भेजा गया ज्ञापन भेजकर विभिन्न मागें उठाई गई है जिसमें महंगाई भत्ता की बहाली व समय पर भुगतान। होटल, दुकान, स्कूलों में काम करने वालों को बोनस, साप्ताहिक छुट्टी मिले। 12 घंटे काम का नियम रद्द किया जाए, 8 घंटे का शिफ्ट लागू हो। ₹26,000 न्यूनतम वेतन तय किया जाए। गैस, डीजल, पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को रोका जाए। नई पेंशन स्कीम खत्म कर पुरानी पेंशन योजना बहाल हो। रेहड़ी-पटरी वालों को स्थायी स्थान और सम्मानजनक रोज़गार मिले। रिक्शा चालकों और सफाई कर्मचारियों के साथ हो रहे भेदभाव को तुरंत रोका जाए। शिफन कोर्ट में उजड़े परिवारों को फिर से बसाया जाए। महिला श्रमिकों को सुरक्षा, ओवरटाइम और अवकाश की सुविधा दी जाए। सरकारी विभागों में खाली 50,000 पदों पर भर्ती की जाए। पुराने श्रमिकों को मकान और ज़मीन पर अधिकार दिया जाए। चाय बागानों की ज़मीन का मुआवज़ा श्रमिकों को भी मिले। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह आंदोलन देशभर के करोड़ों श्रमिकों की आवाज़ है। यदि सरकार ने जल्द सुनवाई नहीं की, तो आंदोलन और तेज़ किया जाएगा।

आपको बता दे भारत बंद का आह्वान देश के 10 बड़ी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने मिलकर किया है। उनका कहना है कि सरकार सिर्फ बड़े कॉरपोरेट्स के हित में काम कर रही है. जबकि आम आदमी की नौकरी, वेतन और सुविधाएं घटती जा रही हैं। साथ ही सरकार लेबर कानूनों को कमजोर करके यूनियनों की ताकत खत्म करना चाहती है। इसके अलावा सरकार की नीतियों कर्मचारियों और किसानों के भी खिलाफ हैं। यूनियनों का कहना है कि उन्होंने पिछले साल श्रम मंत्री को 17 सूत्री मांगों का ज्ञापन सौंपा था जिनमें ये प्रमुख मांग की गई थी। बेरोजगारी दूर करने के लिए नई भर्तियां शुरू की जाएं युवाओं को नौकरी मिले, रिटायर्ड लोगों की दोबारा भर्ती बंद हो, मनरेगा की मजदूरी और दिनों की संख्या बढ़ाई जाए,
शहरी बेरोजगारों के लिए भी मनरेगा जैसी योजना लागू हो
निजीकरण, कॉन्ट्रेक्ट बेस्ड नौकरी और आउटसोर्सिंग पर रोक लगे, चार लेबर कोड खत्म हों जो कर्मचारियों के हक छीनते हैं. मूलभूत जरूरतों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और राशन पर खर्च बढ़े
सरकार ने 10 साल से वार्षिक श्रम सम्मेलन आयोजित नहीं किया। बता दें कि इससे पहले श्रमिक संगठनों ने 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022 और 16 फरवरी 2024 को देशव्यापी हड़ताल की थी। वही इसको लेकर विपक्षी पार्टियो ने भी सरकार के आगे कई सवाल खड़े कर दिये है।

देश में देशव्यापी हड़ताल को लेकर विभिन्न संगठनों में सरकार के खिलाफ आक्रोश देखने को मिला है. अब यह संगठन इस बात को लेकर आमने सामने आ चुके हैं कि सिर्फ एक संगठन की आवाज से सरकार को नहीं जगाया जा सकता इसलिए तमाम संगठन संयुक्त होकर सड़कों पर जरूर उतरे हैं इनका मानना है कि सभी संगठन जब एक साथ सड़क पर उतरेंगे तो सरकार को उनकी बातों पर ध्यान और अमल भी करना होगा और यही वजह है की तमाम संगठन ने संयुक्त मोर्चा बना सरकार के खिलाफ विरोध जताया और जिला अधिकारी को अपनी आपत्तियां भी दर्ज कराई अब बरहाल सरकार को देखना होगा कि अगर इसी तरीके से संयुक्त संगठन सड़कों पर आक्रोशित हुए तो यह आने वाले समय के लिए सरकार के लिए भी बड़ी चिंता का विषय होगा।