उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड में नगर निकाय के चुनाव एक बार फिर टलने जा रहे है। राज्य सरकार नगर निकायों में प्रशासकों का कार्यकाल आगे बढ़ाएगी। शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने राज्य में होने वाले निकाय चुनावों पर स्थिति साफ कर दी है….मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के बयान से स्पष्ट हैं कि निकाय चुनाव अब सितंबर-अक्तूबर तक ही हो पाएंगे। क्योंकि इससे पहले पंद्रह सितंबर तक प्रदेश में मंगलौर और बदरीनाथ विधानसभा के लिए भी उपचुनाव होना है, ऐसे में देखें तो नगर निकाय चुनाव की बारी इसके बाद ही आ पाएगी। जबकि, जुलाई-अगस्त में मानसून के कारण चुनाव कराने में दिक्कतें हो सकती है। आपको बता दें कि उत्तराखंड में करीब सौ नगर निकायों का पांच वर्ष का कार्यकाल पिछले साल दो दिसंबर को खत्म होने के बाद इन्हें प्रशासकों के हवाले कर दिया गया था। इन प्रशासकों का कार्यकाल भी जून में समाप्त हो रहा है…वही एक बार फिर सरकार प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ाने जा रही है। बता दें कि नैनीताल हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने प्रशासकों के 6 महीने के कार्यकाल के पूरा होने से पहले निकाय चुनाव कराने का एफिडेविट दिया था। बावजूद इसके अब सरकार प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ाने जा रही है। वहीं निकाय चुनाव से पहले राज्य में मलिन बस्तियों के मुददे पर भी सियासत गरमा गई है। दअरसल एनजीटी के आदेश के बाद नगर निगम की ओर से नदी के किनारे 2016 के बाद हुए अवैध अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई चल रही है। निगम ने 27 बस्तियों का सर्वे कर 560 अतिक्रमण चिह्नित किए है। जिनके खिलाफ कार्रवाई की जानी है। वहीं निगम की इस कार्रवाई से पहले कांग्रेस ने मलिन बस्तियों के मुद्दे पर सरकार की घेराबंदी तेज कर दी है।
उत्तराखंड की धामी सरकार एक बार फिर प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ाने की तैयारी कर रही है। राज्य सरकार ने निकाय चुनाव एक बार फिर टालने के पीछे आचार संहिता को वजह बताया है। शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने निकाय चुनावों पर स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि छह जून तक लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के कारण निकाय चुनाव की तैयारी नहीं हो पा रही है। इस कारण प्रशासकों का मौजूदा कार्यकाल दो जून से आगे बढ़ाना पड़ेगा। उन्होने कहा कि निकाय चुनाव से पहले कई जरूरी काम किए जाने हैं, लेकिन छह जून तक लोकसभा चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण इसमें बाधा आ रही है, इस कारण सरकार कोई भी निर्णय नहीं ले पा रही। ऐसी स्थिति में निकायों में प्रशासकों का कार्यकाल दो जून से आगे बढ़ाना पड़ेगा। इसके साथ ही निकायों में वोटर लिस्ट संशोधन का काम भी चल रहा है, इसके बाद आरक्षण निर्धारण की भी प्रक्रिया पूरी की जानी है। इसके बाद ही नगर निकाय चुनाव संभव हो पाएंगे। वहीं विपक्ष का आरोप है कि सरकार हार के डर से निकाय चुनाव नहीं करा रही है।
वहीं एक ओर जहां राज्य में निकाय चुनाव के मुद्दे पर सियासत गरमाई हुई है तो वहीं दूसरी ओर राज्य में मलिन बस्तियों के मुद्दे पर विपक्ष सत्तापक्ष पर हमलावर हो गया है। दअरसल एनजीटी के आदेश के बाद नगर निगम की ओर से नदी के किनारे 2016 के बाद हुए अवैध अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई चल रही है। निगम ने 27 बस्तियों का सर्वे कर 560 अतिक्रमण चिह्नित किए है। जिनके खिलाफ कार्रवाई की जानी है। वहीं निगम की इस कार्रवाई से पहले कांग्रेस ने मलिन बस्तियों के मुद्दे पर सरकार की घेराबंदी तेज कर दी है। कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि यदि बस्तियों को उजाड़ने की साजिश भाजपा बनाती हैं तो बस्तियों के हक के लिए सड़कों पर उतर कर संघर्ष किया जाएगा।
कुल मिलाकर उत्तराखंड में सरकार एक बार फिर प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ाने जा रही है। माना जा रहा है कि अब सितंबर-अक्टूबर में ही निकाय चुनाव हो सकेंगे…विपक्ष का आरोप है कि सरकार हार के डर से निकाय चुनाव नहीं करा रही है जबकि सरकार आचार संहिता समेत तमाम कार्यों को इसके पीछे की बड़ी वजह बता रही है। वहीं निकाय चुनाव से पहले राज्य में अतिक्रमण के मुद्दे पर भी सियासत गरमा गई है। सवाल ये है कि आखिर क्यों सरकार ने समय रहते निकाय चुनाव की तैयारी नहीं की. क्या सरकार को हार का डर है। क्या सरकार मलिन बस्तिवासियों को राहत देगी या फिर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करेगी