पर्वतीय क्षेत्र उत्तराखण्ड अपने सौंदर्य, शुद्ध वातावरण, संस्कृति व लोक परम्परा के लिए प्रारम्भ से ही चर्चाओं में रहा है, सुन्दर छटा बिखेरे उत्तराखंड में समय समय पर बदलाव लाने का कार्य सरकारों के माध्यम से होता रहा है, चाहे फिर बात शिक्षा, बिजली, पानी, पहाड़, जन, जंगल, स्वास्थ्य की हो किसी भी प्रकार से प्रदेश अचूका नही रहा है किन्तु सरकार तो भिन्न भिन्न योजना के जरिये आम नागरिकों को लाभ देने का कार्य तो करती है पर कही न कही निचले स्तर के कर्मचारियों, अधिकारियों की नाकामियों के कारण आम नागरिकों के आक्रोश का सामना भी सरकारों को ही करना पड़ता है, ठीक एक ऐसा ही मामला बीते कुछ दिन पहले प्रदेश के बागेश्वर क्षेत्र मे भी घटा जहाँ चिकित्सा से जुड़े कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों की लापरवाही के कारण एक डेढ़ साल के मासूम शुभम जोशी की जान चली गयी, शुभम के पिता दिनेश चंद्र जोशी जो की भारतीय सेना में सैनिक है और देश की सेवा भी कर रहे है उनके मुताबिक वह अपने बेटे के खराब स्वास्थ्य को लेकर व उसकी जाने बचाने के लिए पांच अस्पतालों के चककर काटते रहे लेकिन कही भी उनके बेटे को उत्तम उपचार न मिला, उनके अनुसार शुभम का स्वास्थ्य जब अचानक ज्यादा बिगड़ने लगा तो परिवार वाले शुभम को ग्वालदम अस्पताल ले गये किन्तु सुविधा न होने के कारण चिकित्सकों ने उसे बैजनाथ अस्पताल में उपचार के लिए रेफर कर दिया, वहा भी कोई उपचार सही से नही हो पाया, परिजन शुभम को लेकर बागेश्वर के जिला अस्पताल में पहुँचे परन्तु शुभम के पिता के अनुसार वहा के कर्मचारी, नर्स हसी ठिठोलियों में लगे थें वही डॉक्टर भी अपने कार्यों व मोबाइल फोन में व्यस्थ थें, इमरजेंसी में भी इलाज नही हो पाया और वहा से भी परिजनों को हताश करके अल्मोड़ा में इलाज करवाने के लिए भेज दिया गया, हाल तो तब बुरा हो गया जब बागेश्वर में करीब दो घंटे तक कोई एम्बुलेंस सेवा नही मिल पाई, रात्रि के 9:30 बजे एम्बुलेंस मिली, परिजन अल्मोड़ा पहुँचे और वहां डॉक्टरो ने इलाज भी किया लेकिन हालत गंभीर होने के कारण शुभम को हल्द्वानी के लिए रेफर कर दिया, हल्द्वानी में उपचार के लिए शुभम को वैंटीलेटर पर रखा गया पर 16 जुलाई को डॉक्टरों ने मासूम को मृत घोषित कर दिया, सिस्टम की इस लापरवाही ने एक परिवार का चिराग बुझा दिया,मामले को जानते ही प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस कार्य पर अपना क्रोध जताया है वही इस मामले को लेकर कुमाऊं आयुक्त को जांच के आदेश भी दिये है, दोषियों पर किस प्रकार की कार्यवाही की जाएगी और क्या मासूम के परिजनों को इंसाफ मिलता है या नही यह देखने वाली बात रहेगी,वही यह घटना पूरे प्रदेश में चर्चा में है साथ ही राजनीति का मोड़ भी इस घटना ने ले लिया है, पक्ष विपक्ष सब बयानबाजियां से तर्क वितर्क कर रहे है,
मासूम की मौत के बाद स्वस्थ महकमे की लापरवाही को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री का कहना है इस मामले में यदि किसी भी स्तर पर लापरवाही या उदासीनता पाई जाती है तो दोषियों के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी, जनता के विश्वास और जीवन की रक्षा में कोई कोताही सहन नहीं की जाएगी, धाकड़ धामी ने पूर्व में भी ऐसे कई लापरवाह अधिकारियों पर एक्शन लिया है, लेकिन सोचने वाली बात यह है की जब एक सैनिक को उसके बेटे के उपचार के लिए दर दर भटकना पड़ गया तो ऐसे में आम नागरिकों को किस प्रकार की परिस्तिथियों का सामना करना पड़ सकता है,जिसको लेकर पीड़ित परिवार इंसाफ की गुहार लगा रहे है।
चमोली निवासी सैनिक के बेटे की बागेश्वर में मौत के मामले में केवल स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर ने इलाज में ही लापरवाही नहीं बरती बल्कि इस मामले की जांच पर लीपा पोती भी की गई अब इस पूरे मामले पर स्वास्थ्य सचिव ने जांच कमेटी गठित कर एसी एमओ ,सीएमएस और डॉक्टरों को नोटिस जारी कर दिया है. मासूम की मौत के बाद धामी सरकार सख्त है तो वहीं विपक्ष स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को लेकर सरकार के ऊपर गंभीर आरोप लगा रहा है। साथ ही मासूम की मौत पर विपक्ष ने इस पूरे मामले को विधानसभा में उठाने की बात तक की है.
लगातार उत्तराखंड में स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर कहीं सवाल विपक्षी दलों ने खड़े किए हैं. और इस तरीके की तस्वीर भी कई बार विचलित करती है जब किसी मरीज को कंधे पर रखकर कंडी के सहारे एंबुलेंस तक पहुंचाने के लिए कई मिलो पैदल भी चलना पड़ता है. लेकिन राज्य बने 25 साल हो चुके हैं स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने का दवा हर बार हर सरकार ने किया है. लेकिन धरातल पर आज भी स्वास्थ्य सेवाएं खुद बेहतर होने के लिये सरकार से स्वास्थ्य मांग रही है.अब ऐसे में धामी सरकार इन स्वास्थ्य सेवाओं को कैसे पट्टी पर लाती है. और इस पर स्वास्थ्य मंत्री क्या पहल करते हैं यह देखना होगा।
उत्तराखंड टैक्स रिपोर्ट