रिपोर्ट – ज्ञानेश कुमार
उत्तर प्रदेश – बम-बम भोले की गूंज हर ओर आज से गूंज उठी। महाशिवरात्रि को शिवभक्तों की भीड़ वैसे तो तमाम शिवालयों पर उमड़ी लेकिन मुख्यालय स्थित कैलाश मंदिर पर हर साल की तरह इस बार भी भक्तों का सैलाब नजर आया। ऐतिहासिक कैलाश मंदिर में चर्तुमुखी शिवलिंग से जुड़ी आस्थायें मनोकामना पूर्ण करने वाली कही जाती हैं। यही वजह है कि 145 वर्ष पूर्व स्थापित यह मंदिर लोगों की अगाध श्रद्धा का केन्द्र है।
संवत् 1924 में कराया गया मंदिर का निर्माण
आपको बता दें कि मुख्यालय पर कैलाश मंदिर की भव्यता और भगवान शिव का भक्तों को मिलने वाला अनुग्रह इसके महत्व को बढ़ाता रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के बाद राजा दिलसुख राय द्वारा कराये गये तमाम समाजसेवा और धार्मिक कार्यो में कैलाश मंदिर का निर्माण प्रमुख है। संवत् 1924 में उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया। मां गंगा और शिवभक्त राजा द्वारा कैलाश मंदिर में स्वयं ही पूजा-अर्चना के साथ अपने वारिसानों को मंदिर की उन्नति के लिए प्रेरित किया।
भगवान शिव के प्रति श्रद्धा का प्रतीक शिलालेख
शिखर शैली के इस मंदिर की जमीन से ऊंचाई 200 फुट प्रमुख शिव मंदिरों में एक है। चूने बरी के कार्य से मंदिर की मजबूती होने के अलावा चर्तुमुखी शिवलिंग और कुण्डलिनी शक्ति से आवेष्टित जलहरी मुख्य आकर्षण हैं। उस समय लगभग तीन लाख रुपया मंदिर पर व्यय होना बताया जाता है। राजा दिलसुख राय ने खुद काव्य में शिलालेख भी लगवाया, जो भगवान शिव के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। अब तो स्थिति यह है कि चर्तुमुखी शिवलिंग मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली होने को लेकर श्रावण मास के सोमवार व शिवरात्रि को अपार भीड़ नजर आती है। मन्दिर पुरोहित का कहना है कि यह मन्दिर मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है जिसका प्रमाण यहां काफी संख्या में आने वाले श्रद्धालु हैं।