KNEWS DESK … जम्मू-कश्मीर में कल का दिन ऐतिहासिक रहा है। 3 दशकों के बाद मुहर्रम का जुलूस निकाला गया है। वर्ष 1988 में मुहर्रम के जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 34 साल के बाद पहली बार श्रीनगर के गुरु बाजार और लालचौक के साथ सटे पारंपरिक मार्ग से जुलूस निकला गया है। इस मुहर्रम जुलूस में सैकड़ों लोग शामिल हुए है।
आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में 34 साल के अंतराल के बाद मुहर्रम का जुलूस निकाला गया है। शिया समुदाय द्वारा निकाले गए जुलूस में सभी ने काले रंग के कपड़े पहने थे। पैगम्बर मुहम्मद के पोते हज़रत इमाम हुसैन की नारे लगाते हुए एवं सीना ठोककर हज़रत और इमाम हुसैन को याद करते हुए मुहर्रम का जुलूस निकाला गया है। पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय ताजिया जुलूस पर प्रतिबंध लगाया गया था। शिया समुदाय द्वारा निकाली गई यह मुहर्रम जुलूस, जम्मू-कश्मीर में बदले हालात का परिचायक है। इसे देखने से पता चलता है कि अब वहां पर स्थिति सामान्य होती हुई जा रही है।
शांति और धार्मिक श्रद्धा के साथ निकाला गया जुलूस
वहां के सामाजिक और प्रशासनिक माहौल में काफी बदलाव आया है। इस मुहर्रम जुलूस के दौरान वहां न कोई राजनीतिक नारा गूंजा और न किसी ने आजादी समर्थक या राष्ट्रविरोधी के नारेबाजी की है। अलगाववादियों के झंडे और पोस्टर भी कहीं नजर नहीं आए। पूरी तरह शांति व धार्मिक श्रद्धा के साथ जुलूस निकाला गया। मुहर्रम के जुलूस पर पारंपरिक मार्ग से प्रतिबंध हटाने पर जम्मू-कश्मीर के लोगों ने प्रशासन की बहुत प्रशंसा की है।
1988 में जुलूस पर लगाया गया था प्रतिबंध
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के निर्देशानुसार प्रदेश प्रशासन ने करीब 34 वर्ष बाद पहली बार मुहर्रम का ताजिया जम्मू-कश्मीर में बाजारों से होते पारंपरिक मार्ग पर निकाला है। वर्ष 1988 में जम्मू-कश्मीर के आठवीं मुहर्रम जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। जिसके बाद यह पहला मौका है जिसमें शांतिपूर्ण ढंग से जम्मू-कश्मीर में मुहर्रम के जुलूस को निकाला गया है। सिन्हा ने कहा कि कश्मीर में अब आतंकी हिंसा व अलगाववाद का दौर समाप्त हो चुका है। धर्म के नाम पर कश्मीर को तबाह करने में जुटी ताकतें विफल हो चुकी हैं। 34 साल बाद मुहर्रम का जुलूस गुरु बाजार से डलगेट तक पारंपरिक मार्ग पर जुलूस निकल रहा है। आज कश्मीर में शिया भाइयों के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन है।