डिजिटल डेस्क- 2020 दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश से जुड़े UAPA मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को छात्र नेता उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा सहित कई अभियुक्तों की जमानत याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की दो-judge बेंच ने दिल्ली हाई कोर्ट के 2 सितंबर 2022 के जमानत खारिज करने वाले आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित कर लिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि वे 5 साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं, लेकिन ट्रायल अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। उनके वकीलों ने दलील दी कि पुलिस के पास हिंसा भड़काने या दंगे की साजिश रचने का कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है। वकीलों ने कहा कि “लंबी हिरासत और मुकदमे में देरी स्वतः ही जमानत का आधार बनती है।” उमर खालिद की ओर से पहले ही कहा जा चुका है कि दंगे के दौरान वह दिल्ली में मौजूद ही नहीं था, इसलिए उस पर दंगे की साजिश का आरोप निराधार है।
दिल्ली पुलिस का दावा—यह रेजीम चेंज और आर्थिक अव्यवस्था फैलाने की राष्ट्रीय स्तर की साजिश
दिल्ली पुलिस ने इन सभी दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि यह मामला साधारण हिंसा का नहीं बल्कि पैन-इंडिया स्तर की सोची-समझी साजिश का हिस्सा है। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि अभियुक्त व्हाट्सएप समूहों—DPSG ग्रुप और जामिया अवेयरनेस कैंपेन टीम—में सक्रिय थ इन समूहों में दंगे से पहले की रणनीति पर चर्चा होती थी उद्देश्य था सरकार पर दबाव बनाना, व्यवस्था चरमराना और आर्थिक घुटन पैदा करना पुलिस ने यह भी कहा कि ट्रायल में देरी अभियुक्तों की अपनी याचिकाओं और रिट पेटिशनों के कारण हुई है। यदि अभियुक्त सहयोग करें तो दो साल में ट्रायल पूरा हो सकता है।
“मैं आतंकवादी नहीं हूं”—कोर्ट में भावुक हुए शरजील इमाम
सुनवाई के दौरान शरजील इमाम की तरफ से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा “मुझे आतंकवादी या राष्ट्र-विरोधी बताना गलत है। मैं जन्म से भारतीय नागरिक हूं और अब तक किसी अपराध में दोषी नहीं ठहराया गया हूं। उन्होंने कहा कि शरजील को 28 जनवरी 2020 को ही गिरफ्तार कर लिया गया था, जबकि दंगे फरवरी के अंत में हुए थे। ऐसे में केवल भाषणों के आधार पर दंगे की साजिश में उसे शामिल करना कानूनन संभव नहीं है।