Knews Desk, उत्तराखंड में 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होना है। जैसे जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है। वैसे वैसे प्रचार प्रसार और जनता से वादे और दावे भी नेताओं ने शुरू कर दिए हैं। वहीं उत्तराखंड के पिछले 24 सालों के इतिहास पर गौर करें तो राज्य में अबतक हुए चार लोकसभा चुनावों में आपदा कभी बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया। राजनीतिक दलों की उपलब्धियों, राष्ट्रीय और राज्य के अवस्थापना और बुनियादी विकास से जुड़े मुद्दों के शोर में आपदा का मुद्दा नहीं रहा, जबकि हिमालयी राज्य उत्तराखंड हर साल बाढ़, भूस्खलन, भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेलता रहता है। वहीं उत्तराखंड में अबतक कई बड़ी आपदाएं उत्तराखंड को कई बड़े जख्म दे चुकी है। जिसमें केदारनाथ आपदा, रैणी आपदा, जोशीमठ आपदा…समेत तमाम ऐसे जख्म हैं, जिनमें सैकड़ों घरों के चिराग बुझ गए। हजारों करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों का नुकसान हुआ। इन आपदाओं के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए तमाम सरकारों ने कुछ एक प्रयास किए, लेकिन आपदाओं के जोखिम को कम करने के उपायों के बारे में राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों ने कभी गंभीर चुनावी चर्चा नहीं की। लगातार दरकते पहाड़ और खतरों के साये में जी रहे पहाड़ के लोग, ये सवाल पूछे रहे हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में आखिर कब आपदा को मुद्दा माना जाएगा…आखिर कब यहां के राजनेता और लोग इस मुद्दे पर कब गंभीर होंगे
उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव के लिए समय बेहद कम है। भाजपा-कांग्रेस ने चुनाव से पहले अपने संकल्प पत्र पर कार्य भी शुरू कर दिया है। वहीं सत्ताधारी दल भाजपा ने अपने संकल्प पत्र के लिए प्रदेशवासियों से सुझाव भी मांगे इसके तहत प्रदेशभर से भाजपा को 70 हजार से ज्यादा सुझाव आएं है। अधिकांश शिकायतें बिजली, पानी, सड़क, और क्षेत्र के विकास से संबंधित ही मिले हैं। वहीं उत्तराखंड के पिछले 24 सालों के इतिहास पर गौर करें तो राज्य में अबतक हुए चार लोकसभा चुनावों में आपदा कभी बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया। राजनीतिक दलों की उपलब्धियों, राष्ट्रीय और राज्य के अवस्थापना और बुनियादी विकास से जुड़े मुद्दों के शोर में आपदा का मुद्दा नहीं रहा, जबकि हिमालयी राज्य उत्तराखंड हर साल बाढ़, भूस्खलन, भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेलता रहता है। बावजूद इसके आपदा प्रमुख मुद्दा नहीं बन पाता है.
आपको बता दें कि उत्तराखंड में अबतक कई बड़ी आपदाएं आ चुकी है। केदारनाथ आपदा, रैणी आपदा, जोशीमठ आपदा…समेत तमाम ऐसी आपदाएं आज भी डरा देती है। इन आपदाओं से सैकड़ों घरों के चिराग बुझ गए। हजारों करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों का नुकसान हुआ। वहीं हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भूकंप का खतरा भी कम नहीं है। भूकंपीय दृष्टि से उत्तराखंड अति संवेदनशील जोन पांच व चार के अंतर्गत आता है। यहां के पांच जिले उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ व बागेश्वर अति संवेदनशील जोन पांच में हैं। जबकि पौड़ी, हरिद्वार, अल्मोड़ा, चंपावत, नैनीताल व ऊधमसिंह नगर जोन चार में हैं। वहीं टिहरी और देहरादून ऐसे जिले हैं, जो दोनों जोन में आते हैं। यही कारण है कि भूकंप का केंद्र कहीं रहे, उसका असर उत्तराखंड में भी दिखता है।
कुल मिलाकर मूलभुत सुविधाओं के साथ ही राज्य में आपदा को भी प्रमुख्ता मिलनी चाहिए, जनप्रतिनिधियों के साथ ही जनता को भी पर्यावरण के मुद्दे पर गंभीर होना होगा. देखना होगा आखिर कब उत्तराखंड की राजनीति में आपदा को प्रमुख्ता मिलती है और आखिर कब हम पर्यावरण के मुद्दे पर गंभीर होंगे