KNEWS DESK – ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित और छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे कुछ दिनों से रायपुर एम्स में भर्ती थे। सांस लेने में तकलीफ के चलते 2 दिसंबर को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां वे वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
सादगी और संवेदना के लेखक थे विनोद कुमार शुक्ल
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। उन्होंने अध्यापन को अपना पेशा बनाया, लेकिन साहित्य सृजन उनकी पहचान बना। उनकी लेखन शैली बेहद सरल भाषा में गहरी मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करने के लिए जानी जाती है। कविता, कहानी और उपन्यास—तीनों विधाओं में उनका योगदान हिंदी साहित्य में विशेष स्थान रखता है।
विनोद कुमार शुक्ल की पहली कविता ‘लगभग जय हिंद’ वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई थी। उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं। ‘नौकर की कमीज’ पर फिल्म भी बनी, जबकि ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी रचनाओं में आम आदमी, उसकी पीड़ा, उसकी चुप्पी और उसका संघर्ष बेहद सहज तरीके से उभरकर सामने आता है।
नई आलोचना दृष्टि को दी दिशा
विनोद कुमार शुक्ल अपनी पीढ़ी के उन विरले लेखकों में गिने जाते हैं, जिनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य में नई आलोचनात्मक दृष्टि को जन्म दिया। उनकी भाषा की बनावट, भावनात्मक गहराई और कल्पनाशीलता ने उन्हें समकालीन साहित्य से अलग पहचान दिलाई। लोकजीवन और आधुनिक मनुष्य की जटिलताओं को उन्होंने बेहद संवेदनशीलता के साथ अपनी कहानियों और कविताओं में पिरोया।
कई बड़े सम्मानों से हो चुके थे सम्मानित
अपने लंबे साहित्यिक सफर में विनोद कुमार शुक्ल को अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया। इनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रज़ा पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, हिंदी गौरव सम्मान और मातृभूमि पुरस्कार शामिल हैं। साल 2021 में उन्हें साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा सर्वोच्च सम्मान ‘महत्तर सदस्य’ भी बनाया गया था।