हाई कोर्ट सख्त,मुख्य सचिव तलब !

उत्तराखंड रिपोर्ट, देवभूमि उत्तराखंड में अवैध अतिक्रमण पर रार थम नहीं रही है। राज्य में अभी वन भूमि पर हुए अवैध अतिक्रमण पर धामी सरकार का बुलडोजर चल रहा है.जिसके चलते उत्तराखंड में अतिक्रमण हटाने के अभियान के दौरान अपनाई जा रही प्रक्रिया पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने प्रभावित पक्षों को बिना नोटिस दिए और उनका पक्ष सुने बिना की जा रही ध्वस्तीकरण की कार्रवाई पर नाराजगी जताते हुए राज्य के मुख्य सचिव को तलब किया है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किए। कोर्ट ने मुख्य सचिव को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होकर यह स्पष्ट करने को कहा है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के विपरीत जाकर कार्रवाई क्यों की जा रही है।नवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट के सामने तर्क दिया कि राज्य प्रशासन अतिक्रमण हटाने की आड़ में कानून की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहा है। आरोप है कि लोगों को न तो वैधानिक नोटिस दिए जा रहे हैं और न ही उन्हें सुनवाई का कोई मौका दिया जा रहा है, जो सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई ‘बुलडोजर कार्रवाई’ की गाइडलाइन का उल्लंघन है।धामी सरकार की और से पहले ही स्पष्ट किया गया था की कोई भी अवैध अतिक्रमण प्रदेश में बर्दाश नहीं किया जायेगा सरकार की इस मनमानी के चलते मुख्य सचिव से अब नैनीताल हाई कोर्ट ने 19 दिसम्बर तक जवाब माँगा है.जिसके चलते विपक्ष अतिक्रमण को लेकर भाजपा से सरकार की मनमानी को लेकर कई बार जवाब मांगता नजर भी आया अब कोर्ट के आदेश के बाद विपक्ष को भी अतिक्रमण जैसे गंभीर मुद्दे पर चुनाव से पहले घेरने का मुद्दा जरूर मिल गया है.

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने वन विभाग, राजकीय राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग, वन भूमि व राजस्व भूमि पर हुए अवैध अतिक्रमण के खिलाफ स्वतः संज्ञान लिए जाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार को पूर्व में जिला स्तरीय कमेटी बनाकर अतिक्रमण चिन्हित कर अतिक्रमणकारियों की सुनाई करने के निर्देश दिए थे। सुनवाई पर याची द्वारा कोर्ट को बताया गया कि कई जगह बिना नोटिस दिए ही प्रशासन ने अतिक्रमण ध्वस्त करने की कार्यवाही की जा रही है जो सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन है। जिसपर कोर्ट ने मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में पेश होने के साथ सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का किस तरह से पालन किया जाए ये बताने को कहा है।आपको बता दे दिल्ली निवासी एक व्यक्ति ने मुख्य न्यायधीश को पत्र भेजकर कहा है कि नैनीताल के पदमपुरी में वन विभाग की भूमि व रोड के किनारे कुछ लोगो ने सम्बंधित अधिकारियों की मिलीभगत से अतिक्रमण किया है। जिसकी वजह से लोगो को  कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है लिहाजा इसे हटाया जाय। कोर्ट ने इस पत्र का संज्ञान लेकर जनहित याचिका के रूप में सुनवाई की थी साथ में कोर्ट ने जनहित याचिका  का क्षेत्र को विस्तृत करते हुए पूरे प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग ,वन भूमि व राजस्व भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश सभी जिला अधिकारी व डी एफ ओ को देकर रिपोर्ट पेश करने को कहा था।कोर्ट की अतिक्रमण पर हुई सुनवाई के बाद राजनीतिक विपक्षी दल भी सरकार के इस कदम को लेकर आमने सामने हो चुके है.  

प्रदेश में हो रहे अतिक्रमण हटाने अभियान को लेकर धामी सरकार सख्त है वही हाई कोर्ट के आदेश के बाद बिना नोटिस के अतिक्रमण हटाए जाने को लेकर आम जनता में भी इसका गुस्सा सरकार के खिलाफ देखने को मिल रहा है.चाहे इसको लेकर प्रदेश सरकार विकास के कामों का हवाला दे रही हो वही विपक्षी दलों ने भी सरकार से बिना नोटिस दिए अतिक्रमण हटाने व बेबस जनता के लिए कोई नीति ना बनने को लेकर सरकार से जवाब माँगा है साथ ही सरकार का अतिक्रमण को लेकर विरोध किया है.

प्रदेश में लगातार हो रही अतिक्रमण मामले को लेकर कार्यवाही को लेकर हाईकोर्ट ने सख्त निर्देश देते हुए सरकार को निर्देशित किया है. की चिन्हित अतिक्रमणों पर जिला स्तरीय समिति गठित की जाए और अतिक्रमण की सुनवाई का अवसर दिया जाए साथ ही अदालत को बताया गया है, कि कहीं स्थान पर बिना नोटिस जारी किया और बिना सुनवाई का मौका दिए ही अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जा रही है. जो इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों  का उल्लंघन है. अब ऐसे में धामी सरकार की लगातार हो रही अतिक्रमण पर कार्रवाई को लेकर कहीं सवाल खड़े होते हैं. अगली सुनवाई 19 दिसंबर तय की गई है. न्यायालय का फैसला आने के बाद ही तय होगा कि आखिरकार धामी का बुलडोजर प्रदेश में किन नियमों के आधार पर अब चलेगा।

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