उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड सरकार ने सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लगातार हड़ताल करने पर बड़ा फैसला लिया है. सूबे की धामी सरकार ने अगले 6 महीने के लिए एस्मा एक्ट लगा दिया है. यानी कि राज्य सरकार के सभी विभागों, निगमों और प्राधिकरणों में सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल पर छह महीने की अवधि के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया है. सूचना कार्मिक ने अधिसूचना जारी की है.समान कार्य के बदले समान वेतन और नियमितीकरण की मांग को लेकर आंदोलनरत उपनल कर्मियों ने अपना आंदोलन तेज कर दिया है. सरकार के साथ 8वीं बार वार्ता विफल होने पर बुधवार को कर्मचारियों ने उत्तराखंड के सैनिक कल्याण सचिव का पुतला दहन किया और नो वर्क नो पे के आदेश की प्रतियां जलाकर अपना विरोध प्रकट किया. देहरादून में कर्मचारियों का धरना 11वें दिन भी जारी रहा. इधर सरकार के साथ आठवीं वार्ता भी विफल साबित हुई. शासन की ओर से जारी किए गए नो वर्क नो पे का ऑर्डर आने पर आक्रोशित कर्मचारियों ने सैनिक कल्याण सचिव दीपेंद्र चौधरी का पुतला फूफा और ऑर्डर की प्रतियां भी जलाई. कर्मचारियों ने साफ किया है कि बिना किसी भय और दबाव के मांग पूरी होने तक उनकी हड़ताल जारी रहेगी.वही सभी राजनितिक विपक्षी दलों ने भी अपना समर्थन उपनल कर्मियों को दे दिया है.और सभी राजनीतिक दल नो वर्क नो पे के साथ उपनल कर्मियों को नियमितीकरण की मांग को लेकर सड़को पर उतर कर विरोध प्रर्दशन कर रहे है.
उत्तराखंड राज्य के सभी विभागों को मिलाकर करीब 22 हजार उपनल कर्मियों ने सोमवार दस नवंबर से कार्य बहिष्कार का फैसला लिया. उन्होंने इसे सरकार और ब्यूरोक्रेट्स की नाकामी बताते हुए कहा कि वर्ष 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को चरणबद्ध तरीके से सभी उपनल कर्मियों को नियमित किए जाने को कहा था. उसके बावजूद सरकार ने इस आदेश पर अमल करने के बजाय सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. साल 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की अपील खारिज कर दी.कर्मचारियों का धरना 11वें दिन भी जारी रहा. इधर सरकार के साथ आठवीं वार्ता भी विफल साबित हुई. शासन की ओर से जारी किए गए नो वर्क नो पे का ऑर्डर आने पर आक्रोशित कर्मचारी अभी भी सरकार की तानाशाही के खिलाफ सड़को पर डटे हुए है.वही सरकार के आदेश से नाराज ये आंदोलनकरी आपने इस आंदोलन को और उग्र करने की चेतावनी सरकार को दे रहे है.वही राजनैतिक विपक्ष भी सरकार के फरमान का विरोध जताता नजर आ रहा है,ऐसे में ये लड़ाई आने वाले समय में एक बड़े आंदोलन की दिशा में जाती नजर आ रही हैं.
प्रदेश भर में स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, वन विभाग, सिंचाई विभाग, प्रशासनिक और तकनीकी विभागों और कई सरकारी संस्थानों में तैनात उपनल के कर्मचारी लगातार हड़ताल पर हैं.वही अब राजधानी के सबसे बड़े सरकारी दून अस्पताल में उपनल कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से बिलिंग काउंटर से लेकर पर्चे बनाने के लिए मरीजों की लंबी कतारें लगी. दून अस्पताल से भी बड़ी संख्या में उपनल से तैनात वॉर्ड बॉय, नर्स ,फार्मासिस्ट, डाटा एंट्री ऑपरेटर और सफाई कर्मी हड़ताल पर रहे, जिससे मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. करीब डेढ़ सौ से अधिक कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से अस्पताल की व्यवस्थाएं भी चरमराई है.जिसको लेकर विपक्ष ने भी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। वही सत्ता पक्ष का कहना है कि उपनल कर्मचारीयों के हित में संकल्पबद्ध है वही समर्थन देते हुए विपक्ष को यह भी जानने की जरूरत है कि उनके कार्यकाल में उनके द्वारा उपनल कर्मचारीयों के लिए कोई रणनीतियाँ नही बनाई गयी और अब विपक्ष में रहकर सरकार पर सवाल खड़े करना उचित नही है. सरकार उपनल कर्मियों का लगातार संज्ञान ले रही है और निश्चित ही जल्द इसका समाधान भी निकालेगी साथ ही सरकार का जो हड़ताल पर रोक और नो वर्क वो पे का आदेश राज्यहित में लिया गया फैसला है.
चुनावी साल करीब देख प्रदेश में कर्मचारी संगठन अपनी अपनी मांगों को लेकर सक्रिय हो गए हैं. सभी को उम्मीद है, कि सरकार आंदोलन के दबाव में उनकी मांगों को पूरा कर सकती है. ऐसे में प्रदेश में कहीं विभागों के कर्मचारी आंदोलन की राह पर चल पड़े हैं। वही उपनल कर्मचारी नियमितीकरण की मांग को लेकर पिछले 10 दिनों से हड़ताल पर है. दूसरी तरफ उत्तराखंड शासन की ओर से उत्तराखंड में हड़ताल पर प्रतिबंध की अधिसूचना जारी कर दी गई है. यह प्रतिबंध आवश्यक वस्तु अनुरक्षण अधिनियम 1966 एस्मा के तहत लगाया गया है.इस आदेश के बाद आंदोलनकारी सरकार के इस फरमान से बेहद नाराज है.अब भी लगातार प्रदेश में आंदोलन जारी है.ऐसे में सरकार और आंदोलनकारी आमने सामने आ गए है.जिसका अभी तक का खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है.सवाल यही हे की आखिर सरकार के इस आदेश नो वर्क नो पे से आंदोलन रुक जायेगे या इनकी मांगे अभी लम्बे समय के लिए टल जायेगी।