मदरसा बोर्ड खत्म करने की तैयारी,विपक्ष पड़ रहा भारी !

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखण्ड विधानसभा के मानसून सत्र में बुधवार को भारी हंगामे के बीच सभी नौ विधेयक पारित हो गए। इसी के साथ सदन ने 5315 करोड़ रुपये का अनुपूरक बजट भी पास कर दिया गया। सत्र के दौरान विपक्षी हंगामे से सदन कई बार स्थगित हुआ. लेकिन कार्यवाही के बीच महत्वपूर्ण विधेयकों को भी पारित कर लिया गया। बता दे विधान सभा का चार दिवसीय मानसून सत्र डेढ़ दिन में ही खत्म कर दिया गया। इस दौरान सदन में उत्तराखण्ड अल्पसंख्यक विधेयक पास किया गया, जिसके बाद सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एक प्राधिकरण गठित होगा। इस प्राधिकरण से मदरसों को भी मान्यता मिलने का रास्ता साफ हो गया। इसके अलावा समान नागरिक संहिता संशोधन विधेयक भी पारित हुआ। नए प्रावधानों के तहत गलत तरीके से लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए सजा बढ़ा दी गई है। सदन में संशोधित सख्त धर्मांतरण कानून भी पास किया गया। अब जबरन धर्मांतरण पर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान होगा। अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक-2025 लागू होने के साथ ही उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियम समाप्त हो जाएंगे। साथ ही सभी मदरसों को मान्यता लेनी अनिवार्य होगी। यानी विधेयक के लागू होते ही मदरसा बोर्ड बीते दिनों की बात हो जाएगी। इस विधेयक को पारित करा कर धामी सरकार ने सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को भी बड़ी सौगात दी है। वही विपक्ष का कहना है कि सरकार मुस्लिम समुदाय को टारगेट करने और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के वोट बैंक को साधने के लिए ऐसा काम कर रही है।

उत्तराखण्ड विधानसभा का मानसून सत्र भले ही दूसरे दिन 2 घंटे 40 मिनट की कार्रवाई के बाद स्थगित हो गया हो. लेकिन हंगामे के बीच हुई इस कार्रवाई के दौरान सरकार ने 11 अहम विधेयकों को पास कर लिया. सदन में विपक्षी विधायकों के हंगामे के बीच सबसे महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक 2025 को भी सरकार ने पास करा लिया जिसके बनने के बाद प्रदेश में मदरसा शिक्षा बोर्ड की जगह एक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा जिसका लाभ मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ अन्य अल्पसंख्यक जैसे बौद्ध, ईसाई और सिख समुदाय  को भी मिलेगा. सरकार की दलील है कि कांग्रेस के समय जब राज्य में मदरसा शिक्षा बोर्ड बनाया गया तो उसका एक ही मकसद था कि राज्य के मुस्लिम समुदायों को लाभ देना जबकि हमारी सरकार एक ऐसा एक्ट बना रही है जिसमें अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को शिक्षा का अधिकार मिलेगा और उनकी शिक्षा को उत्तराखंड विद्यालय शिक्षा परिषद के मानको से जोड़ा जाएगा. इस विधेयक के तहत उत्तराखंड में मुस्लिम समुदाय के साथ ही अन्य अल्पसंख्यक समुदायों सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदाय के शैक्षणिक संस्थानों को भी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का दर्जा प्राप्त हो सकेगा. जो अब तक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों का दर्जा केवल मुस्लिम समुदाय को ही दिया जाता था।

वही मदरसा बोर्ड की जगह अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान अधिनियम बनाने को लेकर सरकार की अपनी दलील है लेकिन विपक्ष का कहना है कि सरकार मुस्लिम समुदाय को टारगेट करने और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के वोट बैंक को साधने के लिए ऐसा काम कर रही है. कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह का कहना है कि सरकार के पास ना तो करने के लिए कुछ है और ना ही बताने के लिए इसलिए सरकार मुद्दों से भटक कर अल्पसंख्यक की कल्याण की बात कर रही है. वहीं बसपा विधायक मोहम्मद शहजाद ने इस विधेयक पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार अल्पसंख्यक कल्याण के नाम अल्पसंख्यक पिटाई अभियान चला रही हो और फारसी, सिख, ईसाई और बौद्ध समुदाय के वोट बैंक को साध रही है और जनता के बीच यह मैसेज दे रही है कि सरकार ने मुस्लिम लोगों को पीटकर ठीक कर दिया।

जानकारों की मानें तो कैबिनेट के फैसले पर इस्लामी मामलों के जानकार खुर्शीद अहमद का कहना है,जो कानून बनाने की बात सरकार कर रही है वो आर्टिकल 30A का घोर उल्लंघन है. इसके साथ 2004 में लाए गए एक्ट के मुताबिक पहले से ही देश में अल्पसंख्यक आयोग मौजूद है,ऐसे में विधानसभा सत्र के बीच इस मुद्दे को लेकर सरकार का विपक्ष ने कड़ा विरोध किया कांग्रेस के आरोपों में जो शैक्षिक संस्थानों को मान्यता देता है.उस पर चर्चा नहीं है लेकिन सरकार के पास जनता से जुड़े कोई ठोस मुद्दे नहीं हैं. कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ रही है, लेकिन सरकार केवल एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने में जुटी है.अब देखना होगा क्या सरकार का ये फैसला आने वाले समय पर अल्पसंख्यक समुदाय के वोट बैंक को साधने का काम करता है या इसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ सकता है।