डेमोग्राफी का सवाल,मचा बवाल !

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में डेमोग्राफी चेंज को लेकर एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने साफ कहा कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान और जनसंख्या संतुलन से कोई भी छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी. मुख्यमंत्री धामी ने हल्द्वानी में एक कार्यक्रम के दौरान देहरादून के पछवादून इलाके समेत राज्य के कई हिस्सों में हो रहे डेमोग्राफिक बदलाव पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अब राज्य की जनसंख्या संरचना और सांस्कृतिक मूल्यों में किसी भी तरह का बदलाव नहीं होने दिया जाएगा. मुख्यमंत्री ने पिछली कांग्रेस सरकार पर भी निशाना साधा और कहा कि पूर्व में जो लापरवाही हुई, उसकी भरपाई अब सख्ती से की जाएगी। उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि राशन कार्ड, आधार कार्ड, बिजली कनेक्शन और परिवार रजिस्टर जैसे दस्तावेजों के माध्यम से अपात्र लोगों की पहचान कर सख्त कार्रवाई की जाए. राज्य की जनसंख्या संरचना और सांस्कृतिक मूल्यों से कोई समझौता नहीं होगा। हमने सभी जिलों के डीएम को निर्देश दिए हैं कि डेमोग्राफिक बदलाव को लेकर सतर्क रहें और जो लोग भी अपात्र रूप से सरकारी सुविधाएं ले रहे हैं. उनकी पहचान कर कानूनी कार्रवाई की जाए. मुख्यमंत्री पुष्कर धामी का साफ संदेश है कि उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक पहचान के साथ कोई खिलवाड़ नहीं होगा। वही विपक्ष ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिये है।

हिमाचल और यूपी सीमा के बीच बसा हुआ पश्चिम देहरादून जिले का क्षेत्र जिसे पछुवा दून भी कहते हैं यहां डेमोग्राफिक चेंज की समस्या उत्तराखंड सरकार के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। यूपी से आई मुस्लिम जनसंख्या ने यहां की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा कर बसावट करती जा रही है. ग्राम सभा की जमीनों पर मुस्लिम आबादी को बसाने में स्थानीय मुस्लिम ग्राम प्रधानों, प्रधान पतियों की भूमिका सामने आई है साथ ही ग्राम पंचायत अधिकारियों की भूमिका को भी संदेह की नजरों से देखा जाने लगा है। बाहर से आई मुस्लिम आबादी ने पछुवा दून की नदी, नहरों के किनारे, वन विभाग की जमीनों पर अवैध रूप से कच्चे पक्के मकान खड़े कर लिए है और अब इनके आधार कार्ड, वोटर लिस्ट में नाम दर्ज किए जा रहे हैं और इनमें ग्राम प्रधानों और जिला पंचायत सदस्यों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। पछुवा देहरादून के 28 गांव जो कभी हिंदू बाहुल्य हुआ करते थे वो अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए हैं. आरोप है कि आबादी की घुसपैठ का ये खेल कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ जो अब तक बराबर चल रहा है। इन ग्रामों में मुस्लिम प्रधानों की हुकूमत चल रही है जो कभी भी मूल रूप से उत्तराखण्ड के निवासी थे ही नहीं। यूपी, बिहार, असम, बंगाल, यहां तक की बंग्लादेशी, म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिम आबादी यहां पछुवा दून में आकर कैसे बसती चली गई. इस सवाल का जवाब प्रशासन ने ढूंढना शुरू कर दिया है। देहरादून जिले में प्रेम नगर से हिमाचल पोंटा साहिब तक जाने वाली शिमला बाई पास, चकराता रोड के आसपास के इलाको में देवभूमि उत्तराखण्ड का सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक स्वरूप बिगड़ चुका है। मुख्य मार्ग पर फड़ खोको के कब्जे है और उनके पीछे अवैध रूप से आबादी बस चुकी हैं। सरकारी जमीनों पर सौ से ज्यादा मस्जिदों मदरसों की ऊंची  मीनारें दिखाई देती है। आखिर ऐसा कैसे हुआ कि पिछले कुछ सालों में ये इलाका एक दम बदल गया और यहां हिंदू अल्पसंख्यक होता चला गया और मुस्लिम आबादी ने पूरे क्षेत्र को घेर लिया। जानकारी के अनुसार उत्तराखंड यूपी की सीमा वाला ये क्षेत्र हिमाचल से लगता है, हिमाचल ने सख्त भू कानून की वजह से कोई भी बाहरी व्यक्ति वहां जमीन नहीं खरीद सकता और न ही कब्जे कर सकता है। मुस्लिम आबादी वहां बाग बगीचे में कारोबार करने जाती है और अस्थाई रूप से रहती है और वापिस चली जाती है। लेकिन उत्तराखंड में ऐसा नहीं है जिसका फायदा उठाते हुए बाहरी राज्यों के मुस्लिमों ने इस क्षेत्र में अपनी अवैध बसावट कर ली और जहां मौका मिला वहां जमीनों पर कब्जे कर लिए हैं. जिसपर अब धामी सरकार सख्त नज़र आ रही है। वही कांग्रेस ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि प्रदेश में आठ सालों से बीजेपी की सरकार है. जो इस काम को रोकने में नाकाम साबित हुई है।

बता दे राजनीति संरक्षण के पीछे बड़ी वजह यहां की नदियों में चल रहा वैध अवैध खनन है जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है जो कि यहां के राजनीति से जुड़े नेताओं को धन बल की आपूर्ति करते हैं। उत्तराखण्ड सरकार या शासन ग्राम सभाओं की जमीनों की जिस दिन गंभीरता से जांच करवा लेगी तो उसे मालूम चल जाएगा कि उसकी ग्राम सभाओं की जमीन आखिर कहां चली गई. इन 28 गांवों के परिवार रजिस्टरों में कैसे बाहरी लोगों के नाम चढ़ते चले गए. इस पर सवाल उठने लाजमी है। ढकरानी में शक्ति नहर किनारे अवैध कब्जे हुए. धामी सरकार ने दो चरणों में ये अतिक्रमण भी ध्वस्त किए और इसमें कई धार्मिक स्थल भी हटाए गए। उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने अपनी जमीन तारबाड़ से सुरक्षित नही की. अब यहां उत्तराखंड सरकार को सोलर प्रोजेक्ट लगाने है तो देहरादून जिला प्रशासन का बुल्डोजर गरजने लगा, यहां सात सौ से ज्यादा मकान ध्वस्त किए. लेकिन यहां रहने वाली आबादी उत्तराखण्ड छोड़ कर नहीं गई वो आसपास ही मुस्लिम नेताओं के संरक्षण में फिर से अवैध कब्जे कर रही है और इस बार वो पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर बस रही है। इसी तरह सहसपुर, जीवन गढ़, तिमली, हसनपुर कल्याणपुर, के दाखाला, सरबा आदि ग्रामों की हालत है कि जहां ग्राम सभाओं की सरकारी जमीन पर बाहरी मुस्लिम आबादी यहां के प्रधानों ने लाकर बसा दी है। सूत्र बताते हैं कि यहां कब्जेदारों ने राशन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर आईडी सब बनवा लिए है। जिसमें ग्राम प्रधान की मोहर की भूमिका संरक्षण देने वाली रही है। ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी दस्तावेजों के जरिए ही अपना कार्यकाल काट लिया और इनके मामले अदालती कारवाई में लटके हुए है। इन्हें किसका संरक्षण मिल रहा है. ये सवाल भी उठ रहे हैं।

बता दें कि हाल ही में धामी सरकार ने डेमोग्राफी चेंज की समस्या को लेकर बड़ा कदम उठाने की तैयारी की है। सीएम धामी ने सत्यापन प्रक्रिया के लिए गृह विभाग को एप बनाने के निर्देश दिए हैं। सूत्रों के मुताबिक एप का ट्रायल का काम चल रहा है। इसी माह के अंत तक ये पूरी तरह से काम करना शुरू कर देगा.साथ ही देवभूमि उत्तराखंड में डेमोग्राफी चेंज जैसे मुद्दों पर गंभीर रुख अपनाते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गृह विभाग को पुलिस सत्यापन प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में अधिकारियों को काम करने को कहा है।