कब खत्म होगा कांग्रेस का बनवास ?

उत्तर प्रदेश में तीन दशक से ज्यादा समय से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस प्रियंका गांधी के चेहरे के सहारे सूबे में वापसी का सपना संजो रही है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर किये जा रहे चुनावी दावों से इतर जमीनी हकीकत की बात करें, तो कांग्रेस  को भाजपा के साथ ही सपा और बसपा भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं. मजबूत संगठन का दावा कर रही कांग्रेस से बड़े चेहरों का जाना भी लगातार जारी है. जितिन प्रसाद के बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है. कांग्रेस  के मजबूत किले एक के बाद ढह रहे हैं, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अमेठी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली चार में से तीन विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर 2019 के लिए राह बना दी थी. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले अमेठी में राहुल गांधी  को बड़ी शिकस्त दी थी,

वैसे, भाजपा ने 2019 में अमेठी जीतने के बाद से ही गांधी परिवार के आखिरी गढ़ रायबरेली  पर नजरें गढ़ा दी थीं. राहुल गांधी को मात देने के बाद केंद्रीय मंत्री बनीं स्मृति ईरानी अमेठी में अपना आशियाना बनवा रही हैं, साथ ही स्मृति ईरानी अमेठी के दौरे पर आने के दौरान रायबरेली का हाल-चाल लेने भी पहुंचती रहती हैं. उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को रायबरेली जिले को संभालने का अतिरिक्त प्रभार मिला हुआ है. संगठन के कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर पीएम नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ  के नाम के सहारे लोगों के बीच सरकार की उपलब्धियों को पहुंचाने में जुटे हैं. इसी साल हुए यूपी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पहली बार भाजपा के प्रत्याशियों ने अमेठी और रायबरेली से जीत दर्ज की है. कहना गलत नहीं होगा कि उत्तर प्रदेश में सात विधानसभा सीटों पर सिमट चुकी कांग्रेस के सामने अब अपना आखिरी गढ़ बचाने की चुनौती नजर आने लगी है ।

क्या है रायबरेली का गणित ?

सोनिया गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट से जीत जरूर हासिल की थीं. लेकिन, लंबे समय से सेहत की समस्या से जूझ रहीं सोनिया गांधी की उपस्थिति इस क्षेत्र में न के बराबर है. गांधी परिवार के आखिरी सियासी गढ़ रायबरेली का दौरा प्रियंका गांधी करती रहती हैं. लेकिन, उनके सामने पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी है, जो इस गढ़ को कहीं न कहीं कमजोर कर रही है–. रायबरेली लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 6 विधानसभा सीटों में से तीन पर भाजपा ने 2017 के यूपी चुनाव में जीत हासिल की थी. वहीं, बीते 5 सालों में बछरावां, हरचंदपुर, रायबरेली सदर, सरेनी, ऊंचाहार और सलोन विधानसभा सीटों का गुणा-गणित बहुत तेजी से बदला है. हरचंदपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीते विधायक राकेश सिंह अब योगी आदित्यनाथ की तारीफ करते नहीं थकते हैं.– 2018 में भाजपा अध्यक्ष रहते हुए अमित शाह ने कांग्रेस एमएलसी दिनेश सिंह को भाजपा में शामिल किया  गया था

बागी अदिति सिंह की भूमिका

रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह भी बीते लंबे समय से बागी की भूमिका निभा रही हैं. भाजपा के साथ उनकी करीबी बढ़ी है और संभावना जताई जा रही है कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में अदिति सिंह खुलकर भाजपा के समर्थन में आ सकती हैं. हालांकि, ये भी माना जा रहा है कि वो भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए चुनावी मैदान में आ सकती हैं.

अमेठी से राहुल गांधी ने मुंह क्यों मोड़ा

राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में हार के बाद अमेठी से मुंह मोड़ लिया और इसका फायदा भाजपा को मिला भी. पहली बार अमेठी में भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की. वहीं, ऐसा लगता है कि राहुल गांधी का अमेठी से दोबारा चुनाव लड़ने का कोई मन भी नहीं है. क्योंकि, अपने कई बयानों में वह उत्तर भारत के मतदाताओं के बौद्धिक स्तर पर सवाल खड़े कर चुके हैं

 

सोनिया गांधी का अपने लोकसभा क्षेत्र पर कोई खास ध्यान नहीं

सोनिया गांधी बीमार होने की वजह से अपने लोकसभा क्षेत्र पर कोई खास ध्यान नहीं दे पा रही हैं. इस स्थिति में यूपी चुनाव लड़कर प्रियंका गांधी अगले लोकसभा चुनाव से पहले सूबे में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब हो सकती हैं. अगर सूबे की सत्ता में कोई परिवर्तन होता है, तो इससे कांग्रेस को ही मदद मिलेगी. प्रियंका गांधी चाहें, तो विधायक रहते हुए भी 2024 में रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर सकती हैं. अगर प्रियंका गांधी यूपी चुनाव नहीं लड़ती हैं या सपा के साथ गठबंधन करने में कामयाब नहीं हो पाती हैं, तो सूबे में कांग्रेस को ‘निल बटे सन्नाटा’ होने में समय नहीं लगेगा. और, भाजपा यूपी को ‘कांग्रेस मुक्त’ बनाने में कोई कोर-कसर वैसे भी नहीं छोड़ रही है।

 

 

 

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