चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तोड़ी चुप्पी, एस. जयशंकर से मुलाकात के साथ अटकलों पर विराम

KNEWS DESK-  लगभग 20 दिनों की अनुपस्थिति के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आखिरकार सार्वजनिक रूप से नजर आए। लंबे समय से चल रही साइलेंट तख्तापलट और स्वास्थ्य संबंधी अटकलों के बीच यह पहली बार है जब शी जिनपिंग किसी सार्वजनिक कूटनीतिक कार्यक्रम में देखे गए। बीजिंग में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक से इतर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शी जिनपिंग से मुलाकात की, जो इस चुप्पी के टूटने का प्रतीक मानी जा रही है।

शी जिनपिंग को 24 जून के बाद से किसी भी सार्वजनिक मंच पर नहीं देखा गया था। आखिरी बार वह बीजिंग में सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वांग से मुलाकात करते हुए नजर आए थे। इसके बाद उन्होंने ब्रिक्स सम्मेलन से दूरी बनाई और एससीओ के लिए चीन पहुंचे तमाम नेताओं की मौजूदगी के बावजूद सार्वजनिक रूप से अनुपस्थित रहे।

इस लंबी गैरहाजिरी ने कई तरह की अटकलों को जन्म दिया – क्या उन्हें स्वास्थ्य समस्या है? क्या अंदरूनी राजनीतिक उठापटक के चलते वे सार्वजनिक जीवन से पीछे हटे? लेकिन जयशंकर से हुई मुलाकात ने इन सभी कयासों पर विराम लगाने का काम किया।

भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने अपने आधिकारिक एक्स (Twitter) हैंडल पर लिखा “आज सुबह बीजिंग में अपने साथी एससीओ विदेश मंत्रियों के साथ राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिवादन पहुंचाया। राष्ट्रपति शी को हमारे द्विपक्षीय संबंधों में हाल ही में हुई प्रगति से अवगत कराया। इस संबंध में हमारे नेताओं के मार्गदर्शन को महत्व देता हूं।” इस मुलाकात के दौरान जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों में सुधार, हालिया घटनाक्रमों और क्षेत्रीय शांति के महत्व पर चर्चा की।

एस जयशंकर इस समय चीन की यात्रा पर हैं और बीजिंग में आधिकारिक बैठकों के बाद तिआनजिन में आयोजित SCO विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेंगे।

SCO, यानी शंघाई सहयोग संगठन, एक महत्वपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा मंच है, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान और मध्य एशिया के कई देश सदस्य हैं। इस संगठन के तहत क्षेत्रीय स्थिरता, आतंकवाद, व्यापार, और बहुपक्षीय सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाती है।

यह SCO देशों के लिए एक महीने के भीतर दूसरी बड़ी बैठक है। इससे पहले पिछले महीने रक्षा मंत्रियों की बैठक हुई थी, जिसमें भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हिस्सा लिया था। उस बैठक में भारत ने संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर से इनकार कर दिया था, और आतंकवाद पर सख्त भाषा शामिल करने की मांग की थी — खासतौर से 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के संदर्भ में।

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