चीन की विक्ट्री डे परेड, 40 हजार चीनी सैनिक शामिल, जानें किसे है संदेश?

KNEWS DESK- चीन ने द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर जीत की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक भव्य विक्ट्री डे सैन्य परेड का आयोजन किया। बीजिंग के तियानआनमेन चौक पर आयोजित इस परेड में लगभग 40,000 चीनी सैनिकों ने भाग लिया और यह परेड पूरे 70 मिनट तक चली। आयोजन का उद्देश्य न केवल ऐतिहासिक जीत को याद करना था, बल्कि इसके जरिए चीन ने अपनी सैन्य और कूटनीतिक ताकत का वैश्विक प्रदर्शन भी किया।

1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में जापान ने 2 सितंबर को आत्मसमर्पण कर दिया था। चीन ने इस दिन को ‘विजय दिवस’ (Victory Day) के रूप में घोषित किया और तब से यह दिन राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। चीन-जापान युद्ध करीब 14 वर्षों तक चला, जिसने देश की ऐतिहासिक चेतना में गहरी छाप छोड़ी है।

इस साल की परेड खास रही क्योंकि इसमें 25 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए, जिनमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन, और ईरान के राष्ट्रपति शामिल हैं। यह उपस्थिति स्पष्ट रूप से एक संदेश देती है — खासकर अमेरिका के लिए।

चीन यह दिखाना चाहता है कि वैश्विक दक्षिण (Global South) में उसकी पैठ गहरी हो रही है और वह एक मजबूत विकल्प के रूप में उभर रहा है। परेड के जरिए चीन ने अपनी सैन्य शक्ति, तकनीकी क्षमताओं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रदर्शन किया, जो अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी गुट के लिए एक चुनौती माना जा रहा है।

रूस, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे अमेरिका-विरोधी देशों की मौजूदगी इस बात का संकेत है कि चीन एक नई सैन्य और राजनीतिक धुरी तैयार कर रहा है। खासकर उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन की 6 वर्षों के बाद चीन यात्रा और किसी बहुपक्षीय मंच पर उनकी यह पहली उपस्थिति बताती है कि चीन-रूस-उत्तर कोरिया गठजोड़ की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है।

किम की यह यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि यह 2019 के बाद उनकी पहली चीन यात्रा है। उल्लेखनीय है कि किम के दादा किम इल-सुंग 1959 में इसी तरह की परेड में शामिल हुए थे।

जहां एक ओर कई एशियाई, मध्य एशियाई और अफ्रीकी देशों ने इस आयोजन में हिस्सा लिया, वहीं भारत, तुर्किये, मिस्र, श्रीलंका और अफगानिस्तान जैसे प्रमुख देशों की अनुपस्थिति भी चर्चा का विषय रही। यह दर्शाता है कि चीन के कूटनीतिक प्रभाव की एक सीमा भी है, और कुछ देशों ने इस आयोजन से दूरी बनाकर संतुलित विदेश नीति का संकेत दिया है।

चीन इस आयोजन के जरिए खुद को ग्लोबल साउथ का नेता साबित करना चाहता है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के बढ़ते टैरिफ प्रतिबंधों और तकनीकी युद्ध के बीच चीन यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि उसे न केवल समर्थन प्राप्त है, बल्कि वह एक समांतर वैश्विक व्यवस्था की स्थापना कर सकता है।