KNEWS DESK- बांग्लादेश में अगस्त 2024 में हुए तख्तापलट के बाद जब मुख्य सलाहकार यूनुस ने सत्ता संभाली, तो देशवासियों को बड़े-बड़े सपने दिखाए गए थे। लेकिन सत्ता में आए एक साल भी नहीं बीता कि देश की स्थिति बद से बदतर होती नजर आ रही है। चाहे बात कानून-व्यवस्था की हो या आर्थिक स्थिरता की—हर मोर्चे पर बांग्लादेश लगातार पीछे जा रहा है।
बांग्लादेश बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश का बकाया विदेशी कर्ज 103.64 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है। इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ा है। हर बांग्लादेशी नागरिक पर अब लगभग 41,000 रुपये (483 डॉलर) का सार्वजनिक बाहरी कर्ज हो गया है, जो साल 2015-16 के मुकाबले लगभग दोगुना है। उस समय प्रति व्यक्ति कर्ज 257 डॉलर था।
इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस कर्ज में अकेले सरकार का हिस्सा 84.21 बिलियन डॉलर का है। एक तरफ सरकार वैश्विक निवेश और विकास की बात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ देश की राजकोषीय स्थिति डगमगा गई है। बांग्लादेश सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में देश की प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 2,738 डॉलर हो गई है। लेकिन इस वृद्धि का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पा रहा है क्योंकि साथ ही देयताएं भी भारी मात्रा में बढ़ गई हैं। इससे यह सवाल उठता है कि वास्तव में इस विकास का लाभ किसे मिल रहा है? और इसका बोझ कौन उठा रहा है?
बांग्लादेश की मुद्रा ‘टका’ लगातार कमजोर हो रही है, जिससे विदेशी कर्ज और महंगा हो गया है। वैश्विक ब्याज दरों में वृद्धि और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक अनिश्चितता ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को और अधिक संकट में डाल दिया है। विकास व्यय में कटौती और राजकोषीय नीति पर सख्त नियंत्रण अब सरकार की मजबूरी बनते जा रहे हैं।
अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद सत्ता में आए यूनुस ने देश को आर्थिक सुधारों और सुशासन का वादा किया था। लेकिन हालात इसके बिल्कुल उलट हो गए। यूनुस प्रशासन की नीतियां नाकाम साबित हो रही हैं और देश में विरोध की लहर तेज होती जा रही है। राजनीतिक अस्थिरता, सामाजिक तनाव और प्रशासनिक अनिश्चितता देश की आर्थिक सेहत पर सीधा असर डाल रहे हैं।
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