देशभर में चिकनगुनिया के मामलों में तेजी से वृद्धि, जानें क्या हैं लक्षण

KNEWS DESK – देशभर में चिकनगुनिया के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है, विशेषकर महाराष्ट्र के पुणे में, जहां अब तक 2,000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। इस बीमारी के फैलाव के साथ-साथ, इसका वायरस भी म्यूटेशन के कारण नए और गंभीर रूप में उभर रहा है। यह स्थिति अब बेहद चिंताजनक हो गई है क्योंकि चिकनगुनिया के पारंपरिक लक्षणों में बदलाव देखा जा रहा है, जिससे मरीजों में गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ गया है।

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वायरस के नए लक्षण

पुणे के संक्रामक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि चिकनगुनिया अब अपने पुराने लक्षणों से भिन्न होकर नए और ज्यादा खतरनाक लक्षण पैदा कर रहा है। पहले जहां यह बीमारी जोड़ों के दर्द और तेज बुखार के लिए जानी जाती थी, अब इसमें ब्रेन पर भी असर देखा जा रहा है। विशेषज्ञों ने बताया कि नए स्ट्रेन से संक्रमित मरीजों में लकवा मारने का भी जोखिम है।

डॉ. अजय कुमार, एक डेंगू विशेषज्ञ, के अनुसार कुछ मरीजों में असामान्य लक्षण जैसे नाक का काला पड़ना देखा जा रहा है, जो पहले कभी चिकनगुनिया में नहीं देखा गया था। करीब 20-30 प्रतिशत मरीजों में यह नई समस्या देखी जा रही है। इसके अलावा, वायरस के ब्रेन पर असर के चलते मरीजों में न्यूरोपैथी और स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ रहा है।

डेंगू जैसे लक्षण

अब चिकनगुनिया डेंगू जैसे लक्षण दिखा रहा है। जहां पहले यह बीमारी प्लेटलेट्स पर खास असर नहीं डालती थी, अब संक्रमित मरीजों में प्लेटलेट काउंट तेजी से गिर रहा है। कुछ मामलों में तो यह 5,000 से भी कम हो जा रहा है, जो बेहद खतरनाक और जानलेवा साबित हो सकता है। इसके अलावा, मरीजों में फेफड़ों और पेट में पानी भरने जैसी समस्याएं भी देखी जा रही हैं, जो डेंगू के क्लासिक लक्षण माने जाते हैं।

वायरस में म्यूटेशन

महामारी विशेषज्ञ डॉ. जुगल किशोर बताते हैं कि वायरस म्यूटेशन के जरिए खुद में बदलाव करता है ताकि वह लंबे समय तक जीवित रह सके। इस प्रक्रिया में वायरस का नया स्ट्रेन बनता है, जो पहले से अलग होता है और इसके लक्षण भी बदल जाते हैं। चिकनगुनिया के मामले में भी यही हो रहा है। वायरस म्यूटेट होकर पहले से ज्यादा खतरनाक हो गया है, जिससे नए लक्षण और गंभीर जटिलताएं सामने आ रही हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलते वायरस को समझने के लिए और इसकी पहचान करने के लिए मरीजों के सैंपलों की बड़े पैमाने पर जांच होनी चाहिए। इसके लिए राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) की मदद ली जानी चाहिए, ताकि नए स्ट्रेन की पहचान हो सके और इसे नियंत्रित करने के उपाय किए जा सकें।

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