SHIV SHANKAR SAVITA-
भारत में युवाओं को भारत का भविष्य कहा जाता है। भारत की जनसंख्या का 65 प्रतिशत हिस्सा युवाओं का है, इसलिए भारत का भविष्य युवाओं को कहा जाता है। इन युवाओं के कंधों पर भारत के विकास का भार है पर ये युवा भारत के प्रति अपने कर्तव्यों को भूलते जा रहे हैं, ये युवा नशे के गहरे गर्त में गिरते जा रहे है। नशे के खतरनाक गर्त से न सिर्फ ये युवा खोखले हो रहे हैं, बल्कि भारत का भविष्य भी खोखला हो रहा है, भारत का विकास भी खोखला हो रहा है। इन युवाओं को खोखला करने में समाज का भी कम दोष नहीं है, जो अपने आस-पास नशा करते हुए युवाओं को देखते हुए उन्हें मना करने की बजाय चुप रहना उचित समझते हैं। इनके अलावा इन युवाओं को अंधेरे के गर्त में डालने का दोष इनके अभिभावकों का भी है, जो बच्चों पर आँख बंद कर भरोसा करते हैं और बच्चा क्या कर रहा है उसकी कोई सुध नहीं लेते हैं।
बच्चों को नशे की गर्त में डालने के लिए पुलिस प्रशासन भी कम दोषी नहीं है जो नशे के काले कारोबार की जानकारी होने के बाद भी आँख बंद करके बैठी रहती है। जब कभी कोई नशे की शिकायत होती है या कोई बड़ी दुर्घटना घटित होती है तब पुलिस कुछ दिन अभियान चलाकर दो-चार कार्रवाई करके अभियान को ठंडे बस्ते में डाल देती है। आखिर देश के युवाओं को सही रास्ते पर लाने के लिए कोई अभियान हमेशा क्यों नहीं चलता? नशे के कारोबार की धरपकड़ लगातार क्यों नहीं चलती? आखिर देश को खोखला करने वाले कारकों को सलाखों के पीछे न डालने की क्या मजबूरी है?
छात्रों को बनाते हैं शिकार
नशे का काला कारोबार करने वाले अपनी पहली लिस्ट में ग्रामीण क्षेत्रों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने शहर आये छात्र रहते हैं, क्योंकि नशे का काला कारोबार करने वाले जानते हैं कि इन छात्रों पर पढ़ाई का बहुत दबाव रहता है और इनके घर से इन्हें निरंतर पैसा मिलता रहता है, इनके पास पैसों की कमी नहीं होती। इसी बात का फायदा उठाकर नशे का काला कारोबार करने वाले इन छात्रों को नशे की पुड़िया आसानी से उपलब्ध करवा देते है।
सूत्रों के अनुसार कानपुर के काकादेव कोंचिग मंडी और कानपुर विश्वविद्यालय के आसपास स्थित बस्तियों से नशे की सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। शैक्षणिक संस्थानों के आसपास स्थित छोटी-छोटी पान की दुकानों में ये नशे की सामग्री आसानी से 50-100 रूपये में उपलब्ध हो जाती है।
शैक्षणिक संस्थानों के 100 मीटर के अन्दर नशे की दुकान न होने का आदेश हुआ फेल
सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम 2003 के तहत शैक्षणिक संस्थानों के 100 मीटर दायरे के भीतर किसी भी प्रकार के धूम्रपान की बिक्री करना व सेवन करना दोनों अपराध की श्रेणी में आता है। इसका उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोटपा एक्ट के तहत जुर्माना व सजा दोनों का प्रावधान है।

क्या है कोटपा एक्ट?- तंबाकू नियंत्रण कानून (कोटपा) 2003 के तहत सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने, खुलेआम तंबाकू से संबंधित सामग्री बेचने पर कार्रवाई की जाती है। इसके तहत 200 रुपए से 10,000 रुपए तक जुर्माना और 5 साल की कैद तक का प्रावधान है।
क्या महत्वपूर्ण बिंदु है कोटपा एक्ट के?
1-कोई भी व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान नहीं करेगा।
2-कोई भी व्यक्ति सिगरेट या किसी अन्य तम्बाकू उत्पाद को नहीं बेचेगा, बिक्री के लिए पेशकश नहीं करेगा, बिक्री की अनुमति नहीं देगा-
(A)किसी भी व्यक्ति को जो अठारह वर्ष से कम उम्र का है,
(B)किसी भी शैक्षणिक संस्थान के सौ गज की परिधि के भीतर के क्षेत्र में
3-शैक्षिक संस्थाओं द्वारा बोर्ड का प्रदर्शन। शैक्षिक संस्था के स्वामी या प्रबंधक या मामलों के प्रभारी व्यक्ति को परिसर के बाहर एक प्रमुख स्थान पर एक बोर्ड प्रदर्शित करना होगा, जिसमें स्पष्ट रूप से यह लिखा होगा कि शैक्षिक संस्था के एक सौ गज की परिधि में सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पादों की बिक्री सख्त वर्जित है और यह अधिनियम की धारा 24 के अंतर्गत अपराध है, जिसके लिए दो सौ रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
छोटी-छोटी पान की दुकानों में धड़ल्ले से बिकने वाला बटर पेपर
यूं तो बटर पेपर का इस्तेमाल खाना बनाते समय किया जाता है पर इसका दूसरा इस्तेमाल नशे में होने लगा है। चरस और गांजा पीने वाले लोगों को अक्सर इन बटर पेपर को किसी भी छोटी पान की दुकानों में आसानी से मिल जाता है।

नशे की दवाइयाँ और इंजेक्शन
खाद्य एवं औषधि विभाग द्वारा प्रतिबंधित नशीली दवाइयाँ और इंजेक्शन आसानी से नशा करने वाले और इसका कारोबार करने वाले लोगों को उपलब्ध हो जाता है। मार्केट में मेथामफेटामाइन, नाइट्रावेट,बार्बिटुरेट्स, फेंटेनाइल, क्रिस्टल मेथ आदि नशीली दवाएं आसानी से मेडिकल स्टोर में उपलब्ध हो जाती हैं। जबकि इन दवाओं को मेडिकल स्टोर से लेने के लिए डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन की जरूरत होती है पर मेडिकल स्टोर संचालक थोड़े से लाभ के चक्कर में इन प्रतिबंधित दवा उपलब्ध करवा देते है।
18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को धूम्रपान सामग्री देने पर प्रतिबंध की उड़ती धज्जियाँ
सरकारी शासनादेश के तहत इस बात का उल्लेख है कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को धू्म्रपान से संबंधित सामग्री नहीं बेची जाएगी और इस बात का जिक्र भी तम्बाकू उत्पाद कंपनी और शराब उत्पाद कंपनी अपने उत्पादों पर करती हैं पर दुकानों में आते ही इस नियम की धज्जियाँ उड़ जाती है। कोई भी 18 उम्र से कम का बच्चा आसानी से इन उत्पादों को खरीद कर उसका सेवन कर सकता है।

बच्चों को धूम्रपान से बचाने के क्या है नियम?
सरकार ने बच्चों को धूम्रपान से बचाने के नियम बना रखे हैं। इन नियमों के तहत कोई भी दुकानदार जो धूम्रपान की सामग्री बेचता है उसे अपनी दुकान के साइन बोर्ड में बड़े अक्षरों में लिखना होगा कि “18 वर्ष से कम आयु के लोगों को धूम्रपान की सामग्री बेचना प्रतिबंधित” और संदेह होने पर दुकानदार ग्राहकों से आयु संबंधी प्रमाणपत्र मांग कर सत्यापित कर सकता है कि उसकी आयु 18 वर्ष से अधिक है या नहीं। पर इस नियम की अवहेलना खुलेआम होती है। जिम्मेदार इस नियम को लागू करवाने से अक्सर बचते दिखते हैं।
क्या कहते हैं जिम्मेदार?
जिला आबकारी अधिकारी राजेश सिंह के मुताबिक, “कानपुर शहर में 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों को शराब की बिक्री नहीं की जाती। समय-समय पर शराब की दुकानों में जाकर अभियान चलाया जाता है और दुकानदारों को सख्त हिदायत दी जाती है। शिकायत आने पर संबंधित दुकान के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई की जाती है।”