Knews Desk, लुधियाना से राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा ने राज्यसभा के बजट सत्र में देश भर की अदालतों में लंबित मामलों का अहम मुद्दा उठाया है। प्रश्नों का उत्तर देते हुए विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने पिछले पांच वर्षों में भारतीय न्यायपालिका में लंबित कुल मामलों की संख्या के बारे में जानकारी प्रदान की। मंत्री ने राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार आंकड़े उपलब्ध कराए।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की कुल संख्या वर्ष-वार इस प्रकार थी: 59,858 (2019), 65,086 (2020), 70,239 (2021), 69,768 (2022) और 80,765 (2023)। इसी तरह, उच्च न्यायालय में लंबित मामलों की कुल संख्या वर्ष-वार इस प्रकार थी: 46,84,354 (2019), 56,42,567 (2020), 56,49,068 (2021), 59,78,714 (2022) और 62,12,375 (2023) तथा, जिला न्यायालय और सत्र न्यायालय में लंबित मामलों की वर्ष-वार कुल संख्या निम्नानुसार थी: 3,22,96,224 (2019), 3,66,39,436 (2020), 4,05,79,062 (2021), 4,32,09,164 (2022) और 4,44,09,480 (2023)। न्यायालयों में मामलों के लंबित रहने के कारणों का उल्लेख करते हुए मंत्री ने अपने उत्तर में बताया कि न्यायालयों में मामलों के लंबित रहने के कई कारण हैं, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ भौतिक अवसंरचना और सहायक न्यायालय स्टाफ की उपलब्धता, शामिल तथ्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति, हितधारकों अर्थात बार, जांच एजेंसियों, गवाहों और वादियों का सहयोग तथा नियमों और प्रक्रियाओं का उचित अनुप्रयोग शामिल हैं।
जानकारी देते हुए अरोड़ा ने कहा कि मंत्री ने अपने उत्तर में आगे बताया कि मामलों के निपटान में देरी के अन्य कारणों में विभिन्न प्रकार के मामलों के निपटान के लिए संबंधित अदालतों द्वारा निर्धारित समय-सीमा का अभाव, बार-बार स्थगन और सुनवाई के लिए मामलों की निगरानी, ट्रैक और समूहीकरण के लिए पर्याप्त व्यवस्था का अभाव शामिल है। इसके अलावा, आपराधिक मामलों के लंबित रहने की स्थिति में, आपराधिक न्याय प्रणाली विभिन्न एजेंसियों जैसे पुलिस, अभियोजन, फोरेंसिक लैब, हस्तलेखन विशेषज्ञ और मेडिको-लीगल विशेषज्ञों की सहायता पर काम करती है। संबद्ध एजेंसियों द्वारा सहायता प्रदान करने में देरी से मामलों के निपटान में भी देरी होती है। इसके अलावा, मंत्री ने उत्तर दिया कि न्यायालयों में लंबित मामलों का समाधान न्यायपालिका के विशेष अधिकार क्षेत्र में है। हालांकि, सरकार न्यायपालिका द्वारा मामलों के शीघ्र निपटान और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत लंबित मामलों को कम करने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र की सुविधा के लिए प्रतिबद्ध है।
इस उद्देश्य से, सरकार ने 2011 में न्याय प्रदान करने और कानूनी सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की, जिसके दोहरे उद्देश्य थे – प्रणाली में देरी और बकाया को कम करके पहुंच बढ़ाना और संरचनात्मक परिवर्तनों के माध्यम से जवाबदेही बढ़ाना तथा प्रदर्शन मानकों और क्षमताओं को निर्धारित करना। मिशन न्यायिक प्रशासन में बकाया और लंबित मामलों के चरणबद्ध तरीके से निपटान के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण अपना रहा है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ कम्प्यूटरीकरण सहित न्यायालयों के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे, अधीनस्थ न्यायपालिका की संख्या में वृद्धि, अत्यधिक मुकदमेबाजी वाले क्षेत्रों में नीति और विधायी उपाय, मामलों के शीघ्र निपटान के लिए न्यायालय प्रक्रिया की पुनः संरचना और मानव संसाधन विकास पर जोर शामिल है।
अरोड़ा ने कहा कि मंत्री ने आगे बताया कि सरकार और न्यायपालिका की ओर से लगातार प्रयासों के कारण न्यायाधीशों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसके तहत वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 31 से बढ़कर वर्तमान में 34 हो गई है। मई 2014 से सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के 62 न्यायाधीशों की नियुक्ति की है। इसके अलावा, उच्च न्यायालयों के मामले में, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या वर्ष 2014 में 906 से बढ़कर आज की तारीख में 1114 हो गई है, जबकि वर्ष 2014 से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के कुल 208 नए पद सृजित किए गए हैं। वर्ष 2014 से अब तक कुल 976 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है।