हरियाणा- हरियाणा में कांग्रेस को बीजेपी ने तगड़ा झटका देते हुए किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी को अपनी पार्टी में शामिल कर जाट लैंड में खलबली मचा दी है। किरण चौधरी लोकसभा चुनाव में अपनी बेटी की भिवानी महेंद्रगढ़ सीट से टिकट कटने से खफा हो गई थी। किरण की नाराजगी का असर भी दिखा और कांग्रेस के उम्मीदवार राव दान सिंह इस सीट से हार गए। हालांकि तोशाम से विधायक और पूर्व मंत्री किरण चौधरी के बीजेपी में आने के बाद परेशानियां भी बढ़ती दिख रही है। दरअसल संविधान में एक ऐसा कानून मौजूद है जो किरण चौधरी के रास्ते का रोड़ा बन सकता है।
किरण चौधरी ने स्पीकर की बजाए किसे भेजा इस्तीफा?
दरअसल, किरण चौधरी ने अपना इस्तीफा स्पीकर को न भेजकर सीधा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को दिया है। यानि कि किरण चौधरी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने की बजाए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया है। इतना ही नहीं हरियाणा के स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने भी कहा है कि उन्हें अभी तक किरण चौधरी का विधायक पद से इस्तीफा नहीं मिला है। यहां बता दें कि जब भी किसी विधायक को इस्तीफा देना होता है, तो उसे स्पीकर से मुलाकात कर इस्तीफा देना होता है। जैसा कि रणजीत चौटाला और अभी अंबाला लोकसभा से सांसद बने मुलाना के विधायक वरूण चौधरी ने किया है। हालांकि किरण चौधरी दिल्ली विधानसभा की पूर्व स्पीकर रही है, ऐसे में वो भी विधानसभा के नियमों को तकनीकी तौर पर अच्छी तरह से जरूर जानती होगी।
क्या है दलबदल कानून?
किरण चौधरी हमारे संविधान में मौजूद दलबदल कानून के लपेटे में आती दिख रही है। पहले दलबदल कानून के बारे में बात करते हैं। साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ पारित किया गया। साथ ही संविधान की 10वीं अनुसूची, जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है, को संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में जोड़ा गया। दल-बदल कानून में संविधान के अनुसार भारत में निम्नलिखित स्थितियाँ सम्मिलित हैं जिसमें:
- किसी विधायक या सांसद का किसी दल के टिकट पर निर्वाचित होकर उसे छोड़ देना और अन्य किसी दल में शामिल हो जाना।
- मौलिक सिद्धांतों के आधार पर विधायक या सांसद का अपनी पार्टी की नीति के विरुद्ध काम करना।
- किसी दल को छोड़ने के बाद विधायक या सांसद का निर्दलीय रहना, परन्तु पार्टी से निष्कासित किए जाने पर यह नियम लागू नहीं होगा।
सारी स्थितियों पर अगर विचार करें तो दल बदल की स्थिति तब होती है जब किसी भी दल के सांसद या विधायक अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ते हैं या पार्टी व्हिप की अवहेलना करते हैं। इस स्थिति में उनकी सदस्यता को समाप्त किया जा सकता है और उन पर दल बदल निरोधक कानून भी लागू किया जा सकता है। पर यदि किसी पार्टी के एक साथ दो तिहाई सांसद या विधायक (पहले ये संख्या एक तिहाई थी) पार्टी छोड़ते हैं तो उन पर ये कानून लागू नहीं होगा, पर उन्हें अपना अलग से दल बनाने की अनुमति नहीं है वो किसी दूसरे दल में शामिल हो सकते हैं।
वहीं दल बदल कानून लोकसभा या विधानसभा अध्यक्ष पर लागू नहीं होता यानि कि अगर लोकसभा या विधानसभा का कोई सदस्य अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद अपने दल की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दे या फिर दल के व्हिप के विरुद्ध जाकर मतदान कर दे, तो उस पर ये कानून लागू नहीं होता। राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान के दौरान दल के व्हिप का उल्लंघन करने पर भी सदस्यों पर दल बदल कानून लागू नहीं होता। दल बदल कानून के तहत सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित व्यक्ति तब तक मंत्री बनने के लिए अयोग्य रहता है जब तब वह दुबारा चुन कर सदन का सदस्य न बन जाए।
दलबदल कानून के लपेटे में आ सकती हैं किरण
वहीं इस मामले में संविधान विशेषज्ञ रामनारायण यादव का कहना है कि किरण चौधरी पर दलबदल कानून लागू हो सकता है। इतना ही नहीं उन्होंने कहा है कि अगर किरण चौधरी को बीजेपी राज्यसभा का उम्मीदवार बनाती है और वो बिना इस्तीफा दिए चुनाव लड़ती है, तो उन्हें अयोग्य करार दे दिया जाएगा। संविधान विशेषज्ञ रामनारायण यादव का ये भी कहना है कि दलबदल कानून में अब कोई भी कोर्ट जा सकता है, पहले सिर्फ विधायक ही ऐसे मामलों में कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते थे। हालांकि श्रुति चौधरी अगर चुनाव लड़ती है, तो उनके मामले में दलबदल कानून लागू नहीं होता है।
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