होलिका दहन की सामग्री में एक कटोरी पानी, गोबर के उपलों से बनी माला, रोली, अक्षत, अगरबत्ती, फल, फूल, मिठाई, कलावा, हल्दी का टुकड़ा, मूंग दाल, बताशा, गुलाल पाउडर, नारियल साबुत अनाज आदि अवश्य होने चाहिए….
इस बार होलिका दहन 07 मार्च को होगा और 8 मार्च को होली खेली जाएगी. पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 06 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट पर होगी और इसका समापन 07मार्च को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर होगी. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 07 मार्च, मंगलवार को शाम 06 बजकर 24 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा. भद्रा काल का समय 06 मार्च को शाम 04 बजकर 48 मिनट पर शुरू होगा और 07 मार्च को सुबह 05 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगा.इसके बाद ही होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त शुरू होगा. होलिका दहन के लिए पूजा के लिए सबसे पहले प्रथम पूज्य भगवान गणेश का स्मरण करके पूजा की जाती है, फिर उस स्थान को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें. इसके साथ ही पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए.
पूजा विधि
- एक थाली में रोली, कच्चा सूत, अक्षत, पुष्प, साबुत मूंग रखें.
- इसके साथ ही बताशे, नारियल, उंबी और बड़कुले यानि छोटे-छोटे उपलों की माला लें.
- इन सब साम्रगी के साथ पानी से भरा पात्र भी रखें.
- इन सभी चीजों के साथ होलिका की पूजा कर लें और होलिका दहन होने के पर परिक्रमा जरुर करें.
महत्व
होलिका दहन में पूजा, परिक्रमा और प्रसाद का बहुत महत्व होता है.
परिक्रमा करने से सभी दुःखों का नाश होता है और आपकी सभी इच्छाओं को पूर्ण वरदान प्राप्त होता है.इससे घर में सुख शांति और समृद्धि के लिए होलिका दहन के दिन महिलाएं होली की पूजा करती हैं.होलिका दहन का यह दिन बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है.
पौराणिक महत्व
पुराणों के अनुसार, दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भगवान के अलावा किसी अन्य को नहीं मानता तो वह क्रुद्ध हो उठा. उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए. होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुकसान नहीं पहुंचा सकती. किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गयी. भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ. इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है. होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं.