KNEWS DESK- होली रंगों का त्यौहार है। रंगों के साथ-साथ होली खुशियों, मौज-मस्ती, सद्भाव, हँसी-मजाक का भी त्यौाहार है। हिंदू धर्म में होली का पर्व बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। साथ ही होली के एक दिन पहले रात्रि में होलिका दहन भी किया जाता है।
पंचांग के अनुसार भारत में इस बार होली फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि की शुरूआत 13 मार्च 2025 को सुबह 10 बजकर 35 मिनट पर होगी और अगले दिन 14 मार्च 2025 को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी। इस वर्ष होलिका दहन के दिन भद्रा का भी साया रहेगा।
भारत में होली का पर्व एक है और सभी इसे एक ही दिन मनाते है पर भारत के हर राज्य में इसे मानने के तरीके अलग-अलग है। भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक हर कोई अपने ढंग से होली मनाता नजर आता है। भले ही होली को मनाने के तरीके अलग हों पर इसके पीछे उद्देश्य सिर्फ सद्भाव और अमन का रहता है। आइये जानते हैं कि किस राज्य में क्या ढंग है होली मनाने का।
मथुरा-वृन्दावन की होली- कृष्ण और राधा के प्रेम का प्रतीक मथुरा-वृन्दावन में होली का पर्व 16 दिन तक मनाया जाता है। कहा जाता है कि बचपन में कृष्ण राधा रानी के गोरे रंग और स्वयं के श्यामल रंग के कारण बार-बार माँ यशोदा से पूछा करते थे। इसी बार-बार पूछने की वजह से माँ यशोदा ने एक बार कृष्ण जी को बहलाने के लिए राधा रानी के चेहरे पर रंग लगा दिया था। तब से इस क्षेत्र में इसी तरह रंग और गुलाल लगाकर एक-दूसरे के साथ होली मनाई जाती है।

बरसाने की लठ्ठमार होली- कृष्ण प्रेमियों के लिए बरसाने की होली खासा महत्व रखती है। मथुरा स्थित राधा रानी के गाँव में महिला और पुरूष लठ्ठमार होली खेलते है। बरसाने की इस होली में महिलाएं अपने पति को लाठी से मारती हैं, वहीं पुरूष अपने आप का बचाव करते दिखते हैं। बरसाने की इस होली की छठा दूर तक जाती है और विदेशों से लोग इस होली का आनंद लेने प्रतिवर्ष बरसाना आते हैं। बरसाना की ये होली पूरे देश में प्रसिद्ध है।

हरियाणा की धुलेंडी- हरियाणा में होली के पर्व को ‘धुलेंडी’ भी कहा जाता है। हरियाणा की ये धुलेंडी होली देवर और भाभी के बीच प्रेम को दर्शाता है। इस दिन भाभियाँ अपने देवरों को पीटती है और अपने आपको देवर के द्वारा डाले जाने वाले रंग से बचाने की कोशिश करती है, वहीं देवर भाभियों को रंग डालने की फिराक में रहते हैं और नई-नई योजना बनाकर भाभियों को रंगने का प्रयास करते हैं।

महाराष्ट्र की मटकी फोड़ होली- महाराष्ट्र में होली के दिन मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन होता है, इसीलिए इसे वहां मटकी फोड़ होली कहा जाता है। महाराष्ट्र में यह होली मस्ती के साथ थोड़ी चुनौतीपूर्ण भी होती है। यहाँ महिलाएं मक्खन से भरी मटकी ऊंचाई पर बांधती है और पुरूष पिरामिड बनाकर उसे फोड़ने का प्रयास करते हैं। पुरूष जब पिरामिड बनाकर ऊपर चढ़ते हैं तो महिलाओं द्वारा रंग से भरी बाल्टी उनपर फेंकी जाती है ताकि कोई आसानी से मटकी न तोड़ सके। मटकी की ये होली श्रीकृष्ण के बालरूप की याद दिलाती है और देखने वालों को रोमांचक से भर देती है।

बंगाल की डोल पूर्णिमा- बंगाल में होली के स्वरूप को डोल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। बंगाल में डोल पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु का जन्मदिवस इस दिन मनाया जाता है। डोल पूर्णिमा के दिन भगवान की सजी हुई प्रतिमा की झांकी निकाली जाती है और इस झांकी में शामिल लोग हरि भजन गाते हुए प्रभु की महिमा का गुणगान करते हैं। गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के आश्रम ‘शांति-निकेतन’ में होली को ‘वसंत-उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है।
पंजाब की होला-मोहल्ला होली- पंजाब में होली के पर्व पर होला-मोहल्ला का आयोजन किया जाता है। सिख समुदाय में इस होला मोहल्ला का बड़ा महत्व है। सिख समुदाय इस होला मोहल्ला पर्व को शारीरिक प्रबलता व सैनिक दृढ़ता के रूप में देखते हैं। कहा जाता है कि होला मोहल्ला पर्व का प्रारंभ अंतिम सिख गुरू ‘गुरू गोविंद सिंह’ ने किया था।

मणिपुर का प्रसिद्ध थाबल चोंगला नृत्य- मणिपुर में होली के विशेष अवसर पर थाबल चोंगला नृत्य का आयोजन किया जाता है। ये नृत्य इतना प्रसिद्ध है कि इसे देखने के लिए विदेशियों का जमावाड़ा मणिपुर में रहता है। मणिपुर में होली को छः दिनों तक मनाया जाता है और आपस में लोग रंगों से होली खेलते है और होलियारी गीत गाते है।
