KNEWS DESK – देश अभी भी पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के सदमे से उबर नहीं पाया है। इस दिल दहला देने वाली घटना ने देशवासियों को झकझोर कर रख दिया है। पूरे भारत में शोक और आक्रोश की लहर है। इसी बीच एक बार फिर यह बहस छिड़ गई है कि क्या ऐसे माहौल में पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए? इस संवेदनशील मुद्दे पर मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने अपनी बात खुलकर सामने रखी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक संबंधों की दिशा हमेशा एकतरफा रही है।
“लता जी को पाकिस्तान में कभी मंच क्यों नहीं मिला?”
एक बातचीत में जावेद अख्तर ने कहा, “हमने पाकिस्तान के कई कलाकारों को खुले दिल से स्वीकार किया, लेकिन हमारे कलाकारों को वहां कभी वैसा ही सम्मान नहीं मिला। लता मंगेशकर को वहां के लोग बहुत पसंद करते थे, उनके गीत वहां भी गूंजते थे, लेकिन उन्हें कभी पाकिस्तान में प्रस्तुति देने का अवसर क्यों नहीं मिला? ये सोचने की बात है।” उन्होंने कहा, “मैं पाकिस्तान की जनता से नहीं, बल्कि वहां की व्यवस्था से सवाल कर रहा हूं। ये एकतरफा ट्रैफिक कब तक चलेगा?”
इस बहस के बीच, पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान और भारतीय अभिनेत्री वाणी कपूर की फिल्म ‘अबीर गुलाल’ की भारत में प्रस्तावित रिलीज को रोक दिया गया है। फिल्म 9 मई को सिनेमाघरों में आने वाली थी, लेकिन वर्तमान हालात को देखते हुए सेंसर बोर्ड और वितरकों ने इसे रिलीज न करने का फैसला लिया।
“पाबंदी से कट्टरपंथियों को ही ताकत मिलेगी”
जावेद अख्तर ने आगे कहा, “अगर भारत पाकिस्तानी कलाकारों पर पाबंदी लगाता है, तो इससे वहां के कट्टरपंथियों को ही बढ़ावा मिलेगा। वे चाहते ही यही हैं – दोनों देशों के बीच दूरी बढ़े। हमें सोचना होगा कि हम अपने फैसलों से किनका हित साध रहे हैं?”
हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि मौजूदा हालात में पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में अनुमति देना उचित नहीं है। “जब तक दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान समान स्तर पर नहीं होता, तब तक इसे प्रेम नहीं, एकतरफा मोहब्बत कहा जाएगा – और एकतरफा रिश्ते कभी टिकाऊ नहीं होते|
जनता की तीखी प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर ज़ोरदार बहस छिड़ गई है। कई लोगों ने जावेद अख्तर के विचारों का समर्थन किया है और कहा है कि यह आत्मसम्मान और बराबरी का मामला है। वहीं कुछ लोग इसे संकीर्ण सोच मानते हुए यह दलील दे रहे हैं कि कला की कोई सीमा नहीं होती।
कभी गुलाम अली, नुसरत फतेह अली खान, फैयाज़ अहमद फैज़ जैसे कलाकारों को भारत में खूब सराहा गया, लेकिन भारतीय कलाकारों को पाकिस्तान में उस तरह की आज़ादी या मंच शायद ही कभी मिला हो।