KNEWS DESK- कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका अभी तक कोई ठोस इलाज मेडिकल साइंस में मौजूद नहीं है| ब्रेन कैंसर को सबसे खतरनाक माना जाता है| ग्लियोब्लास्टोमा (Glioblastoma) ब्रेन कैंसर का एक टाइप है जिसका अब तक कोई इलाज नहीं है| ये सबसे खतरनाक माना जाता है| इस कैंसर से पीड़ित मरीज 12 से 18 महीने के भीतर अपनी जान गंवा देता है| ऐसे में IIT दिल्ली के PHD स्कॉलर विदित गौड़ ने इसपर रिसर्च करके इम्युनोजोम्स थेरेपी का आविष्कार किया है| विदित को इस रिसर्च को पूरा करने में लगभग 5 साल का समय लगा है| छात्र द्वारा बनाई गई इस थेरेपी का कोई भी साइड इफेक्ट नहीं है| विदित ने ऐसी बीमारी का इलाज ढूंढ निकाला है जिसका तोड़ दुनिया के बड़े से बड़े डॉक्टर नहीं निकाल पा रहे थे| इस थेरेपी को लेने के बाद मरीज का ब्रेन कैंसर जड़ से खत्म होने की उम्मीद है| फिलहाल इस दवाई का ट्रायल चूहे पर किया गया है, जिसमें सफलता हासिल हुई है| अब इसे जल्द ही इंसानों पर ट्राई किया जाएगा|
खतरनाक ड्रग्स से मिलकर बनी है ब्रेन कैंसर की दवाई
विदित ने बताया कि सीडी 40 एंटीबॉडी और RRX-001 ये दोनों ऐसे ड्रग्स हैं जो कैंसर के इलाज के लिए बहुत उपयोगी माने जाते हैं लेकिन इन दोनों ही ड्रग्स के साइड इफेक्ट बहुत ज़्यादा हैं| मतलब मान लीजिए कि लंग कैंसर के लिए किसी मरीज को दोनों ड्रग्स में से कोई एक डोज दी गई तो हो सकता है कि इनसे लंग कैंसर तो ठीक होना शुरू हो जाएगा लेकिन लीवर भी ख़राब हो सकता है| इसलिए इन्हें साइड इफेक्ट के चलते क्लिनिकली अप्रूवल नहीं मिला है| विदित ने इन दोनों ड्रग्स को मिलाकर इम्युनोजोम्स थेरेपी का अविष्कार किया है, जिससे ब्रेन कैंसर ठीक किया जा सकता है|
विदित ने बताया कि उन्होंने थेरेपी का ट्रायल चूहे पर किया है. इसके नतीजों में ये देखा गया कि न सिर्फ़ इसके इस्तेमाल से ब्रेन कैंसर ख़त्म होता है बल्कि इसका कोई साइडइफेक्ट भी नहीं है| इतना ही नहीं इस थेरेपी के इस्तेमाल से कैंसर इलाज होने के बाद पलटकर वापस भी नहीं आता| जबकि अमूमन कैंसर के इलाज में यह माना जाता है कि एक बार ख़त्म होने के बाद भी वो दोबारा हो सकता है|
चूहों पर ऐसे आजमाई गई ब्रेन कैंसर की ये थेरेपी
विदित ने 2019 में इस रिसर्च को शुरु किया था| इसमें 10-10 चूहों के 5 ग्रुप लिए गए थे| चूहे में ट्यूमर सेल डालने के 10 दिन बाद इम्युनोजोम्स थेरेपी देनी शुरु की| एक हफ़्ते में असर दिखना शुरु हुआ और 24 दिन के अंदर ट्यूमर गायब हो गया, जबकि बाक़ी ग्रुप्स में ट्यूमर बढ़ता रहा, जिन्हें ये थेरेपी नहीं दी गई थी| 90 दिन तक चूहे की ऐक्टिविटी को चेक करते रहे| थेरेपी के बाद कोई साइडइफेक्ट नहीं दिखा जबकि बाक़ी ग्रुप में लीवर डैमेज हो गया| 90 दिन के बाद के दोबारा ट्यूमर सेल डाले, देखा गया कि कोई असर नहीं हो रहा है, मतलब दोबारा कैंसर लौटकर नहीं आया है| इसी सफलता के कारण अब इस दवाई को इंसानों पर ट्राई किया जाएगा|
हर साल दुनिया में ब्रेन ट्यूमर के 3 लाख मामले सामने आते हैं| ये सबसे ज्यादा 0-14 साल के बच्चों में होता है| बच्चों में होने वाले कैंसर में ज्यादातर यही है| 15-30 प्रतिशत बच्चे ही कुछ दिन जिंदा रह पाते हैं| अधिकतर बच्चे 12-18 महीने में अपनी जान गवां देते हैं| एडल्टस में भी 12% लोग ही लंबा सर्वाइव कर पाते हैं. अगर बच भी गए तो सिर्फ़ 5 साल तक ज़िंदा रहते हैं|
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