अफगानिस्तान के काबुल में तालिबान के नए स्व-घोषित सुरक्षा प्रमुख, हक्कानी नेटवर्क के खलील हक्कानी, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का करीबी है, को 10 साल पहले अमेरिका ने आतंकवादी घोषित किया था। अमेरिका ने खलील हक्कानी के सिर पर 50 लाख डॉलर यानी करीब 36 करोड़ 74 लाख 84 हजार रुपये का इनाम भी रखा था। एनबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 2011 में तत्कालीन अमेरिकी सैन्य अधिकारी माइक मुलेन ने कांग्रेस को बताया था कि हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक प्रमुख सहयोगी है। हक्कानी नेटवर्क जो एक संगठित आपराधिक परिवार की तरह काम करता है, को कई अमेरिकियों की किडनैपिंग को बिजनेस की तरह करने का दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, डौग लंदन ने कहा कि खलील हक्कानी आंतकी संगठन का चीफ है, जिसने रिटायर होने से पहले अफगानिस्तान में सीआईए आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया था। 2018 में उसने अमेरिकी सेना और अफगान नागरिकों के खिलाफ आत्मघाती बम विस्फोटों को मंजूरी दी थी। एनबीसी ने कहा कि जब एजेंसी सोवियत संघ के आक्रमण के खिलाफ तालिबान के आतंकियों को हथियार दे रही थी और प्रशिक्षण दे रही थी, तब खलील हक्कानी सीआईए का भागीदार भी था।खलील हक्कानी को 2011 में अमेरिकी सरकार ने आतंकी माना था। विदेश विभाग ने खलील हक्कानी के बारे में यह भी कहा है कि उसने अल कायदा की ओर से भी काम किया है और वह अल कायदा के आतंकवादी अभियानों से जुड़ा रहा है।
लेखक लंदन ने भी दी थी हक्कानी के लिए राय
अपने सीआईए करियर के बारे में एक नई किताब, द रिक्रूटर के लेखक लंदन ने कहा कि खलील हक्कानी अल कायदा चीफ का मैंसेजर और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का वरिष्ठ अधिकारी रहा है। खलील, हक्कानी नेटवर्क के बहुत सारे फैसले करता है। लंदन ने कहा कि खलील हक्कानी सीआईए का भागीदार रहा है, जब एजेंसी 1980 के दशक में सोवियत संघ के सैनिकों से लड़ने के लिए अफगान विद्रोहियों को हथियार मुहैया करा रही थी। वो सिराजुद्दीन हक्कानी का चाचा है, जो एक आतंकवादी भी है, उसपर लाखों डॉलर का इनाम है।
आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISIS-K)
काबुल एयरपोर्ट पर हुए हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISIS-K) ने ली थी। इस हमले में एयरपोर्ट पर तैनात 13 अमेरिकी सैनिकों समेत 108 लोगों की मौत हो गई थी। रिपोर्ट बताती हैं कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सक्रिय इस्लामिक स्टेट का क्षेत्रीय गुट ISIS-K लंबे समय से अमेरिकी सैनिकों पर हमले की योजना बना रहा था। ISIS-K का नाम उत्तरपूर्वी ईरान, दक्षिणी तुर्कमेनिस्तान और उत्तरी अफगानिस्तान में आने वाले क्षेत्र के नाम पर रखा गया है। यह संगठन सबसे पहले 2014 में पूर्वी अफगानिस्तान में सक्रिय हुआ। यहां से इसने बेरहमी और क्रूरता की पहचान बनाई। पाकिस्तान के सैकड़ों तालिबानी इस संगठन के साथ जुड़े और चरमपंथी हमलों को अंजाम दिया। जब सेना की मदद से इन्हें निकाला गया तो ये अफगानिस्तान की सीमा पर आ गए और फिर यहीं से ऑपरेट करने लगे। ताकत इसलिए बढ़ती गई, क्योंकि तालिबान पश्चिमी देशों और सोच के प्रति नरम होता गया। ऐसे में तालिबान के असंतुष्ट लड़ाके ISIS-K में जाने लगे।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी के अधिकारियों की राय
अमेरिकी खुफिया एजेंसी के अधिकारियों के मुताबिक, ISIS-K में सीरिया और दूसरे विदेशी चरमपंथी संगठनों के कुछ आतंकी भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में इस समूह के 10 से 15 प्रमुख आतंकियों की पहचान की है। ISIS-K में अफगानियों समेत दूसरे आतंकी समूहों से पाकिस्तानी और उज्बेकिस्तान के आतंकी शामिल हैं। इस समूह ने हाल के कुछ वर्षों में पूर्वी अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। खासतौर से अफगानिस्तान के नंगरहार और कुनार प्रांतों में इसकी अच्छी पहुंच है। इस संगठन ने काबुल में स्लीपर सेल तैनात किए हैं, जिन्होंने 2016 से बड़ी संख्या में काबुल और उसके बाहर आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया है। ISIS-K शुरुआती तौर पर सिर्फ पाकिस्तान से सटे कुछ इलाकों तक सीमित था, लेकिन अब यह जाज्वान और फरयाब समेत उत्तरी प्रांतों में दूसरा प्रमुख गुट बन गया है। अफगान और पाकिस्तानी नागरिकों के खिलाफ ISIS-K ने 100 से ज्यादा आतंकी हमलों को अंजाम दिया है।
ISIS और तालिबान दोनों ही कट्टर सुन्नी इस्लामिक आतंकी हैं, फिर भी दोनों एक दूसरे का विरोध करते हैं। ISIS-K और तालिबान के बीच कई मुद्दों पर असहमति है। ISIS ने तालिबान पर आरोप लगाया है कि उसने जिहाद और युद्ध का मैदान छोड़कर दोहा और कतर के बड़े होटलों में बैठकर शांति के समझौते किए हैं। स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड को-ऑपरेशन के मुताबिक, दोनों संगठनों के बीच विचारधारा का फर्क है। इसके साथ ही संसाधनों को लेकर संघर्ष भी दोनों के बीच लड़ाई का बड़ा कारण है।
असोसिएटिड प्रेस के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में तालिबान ने अमेरिका के साथ समझौता करने की कोशिशें की हैं। इससे नाखुश लोग तालिबान छोड़कर ज्यादा कट्टर इस्लामिक स्टेट से जा मिले। रिसर्चर्स का कहना है कि ISIS-K और हक्कानी नेटवर्क के बीच मजबूत कड़ी है। हक्कानी नेटवर्क तालिबान से जुड़ा है। एशिया पैसिफिक फाउंडेशन के डॉ. सज्जन गोहल ने BBC को बताया कि 2019 से 2021 के बीच कई प्रमुख हमलों को ISIS-K, तालिबान के हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान के दूसरे आतंकी समूहों ने मिलकर अंजाम दिया है।
ISIS-K ने निशाना बनाया
खुरासान आतंकी संगठन ने काबुल समेत कई दूसरे शहरों में सिलसिलेवार आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया है। यह हमले सरकार और विदेशी मिलिट्री दोनों के खिलाफ किए गए हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि संठगन ने ये सारे हमले खुद को ज्यादा हिंसक और कट्टर आतंकी संगठन के तौर पर पेश करने के लिए किए। समूह ने गांव के बुजुर्गों की सरेआम हत्या से लेकर रेड-क्रॉस कार्यकताओं को मारने और भीड़ में फिदायीन हमले किए हैं। इसके साथ ही शिया समुदाय के लोगों के खिलाफ आत्मघाती हमलों के पीछे भी इसी समूह को जिम्मेदार माना जाता है। इस समूह ने हाल ही में काबुल में सूफी मस्जिद और शिया बस यात्रियों को निशाना बनाया। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि शिया हजारा अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों के स्कूल पर हुआ हमला भी इसी समूह ने कराया।