मध्य प्रदेश का ऐसा जिला जहाँ पर बीमार बच्चों को गर्म लोहे से दागा जाता है

भोपाल-  मध्‍य प्रदेश का शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य इलाका है| यहां पर आज भी सामाजिक कुरीति चलन में है| ठंड के समय में जब बच्चे बीमार पड़ते हैं और उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है तो परिजन नवजात की नीली नसों को गर्म लोहे से दगवाते हैं| शहडोल में लगभग 2 हजार से ज्यादा बच्चे इस कुप्रथा का शिकार हो चुके हैं| प्रशासन लगातार जागरूकता अभियान चला रहा है, कार्रवाई भी कर रहा है| यहां तक कि धारा 144 लागू की, इसके बावजूद भी  ज़मीनी  स्तर पर इस कुप्रथा को रोकने में सफलता हाथ नहीं लग सकी है|

शहडोल में दागना कुप्रथा का अंश आज भी बच्‍चों को भुगतना पड़ रहा है| हाल ही में जिले में ऐसे 2 मामले सामने आए हैं, जिसमें मासूम दुधमुही बच्चियों को गर्म लोहे से दागा गया| इनमें से एक बच्ची की मौत हो गई, वहीं दूसरी बच्ची इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती की गई है|

दागना कुप्रथा को लेकर जिला प्रशासन और मेडिकल कॉलेज आमने-सामने आ गए हैं| कलेक्टर का कहना है कि “बच्ची की मौत निमोनिया के कारण हुई, जबकि मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर मौत की वजह कहीं न कहीं दागना को ही बता रहे हैं|” इस पूरे मामले में जिला प्रशासन के निर्देश पर मृत बच्ची के परिजनों के विरुद्ध केस दर्ज किया गया है|

मेडिकल कॉलेज में जिस 3 माह की बच्ची की मौत हुई थी, उसके शव को कब्र से निकाला गया है| इसके बाद विवाद और बढ़ गया है| तीन दिन पहले जिस बच्ची की मौत हुई थी, उसके शव को कठौतिया गांव में परिजनों ने दफना दिया था|  हड़कंप मचने के बाद पुलिस ने शव को निकलवाकर पोस्‍ट-मार्टम करवाया है, जिसकी रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है|

शव निकालने को लेकर भी प्रशासन, पुलिस और मेडिकल कॉलेज आमने-सामने हैं| कलेक्टर का कहना है कि “पुलिस के आवेदन पर शव निकालने की अनुमति दी गई थी| वहीं, पुलिस कह रही है कि मेडिकल कॉलेज ने आवेदन दिया था, जिसके बाद शव निकालने की अनुमति मांगी गई| मेडिकल कॉलेज इस पूरे मामले से खुद को बचाते हुए नजर आ रही है| मेडिकल कॉलेज प्रबंधन का कहना है कि हमने शव का पोस्‍ट-मार्टम करने के लिए कोई आवेदन नहीं दिया है|”

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