डिजिटल डेस्क- भारतीय रुपये ने बुधवार को इतिहास में पहली बार 90 रुपये प्रति डॉलर का स्तर तोड़ दिया है। विदेशी बाजारों में लगातार बढ़ती डॉलर की मांग, एफपीआई की बिकवाली और आरबीआई के सीमित हस्तक्षेप ने रुपये को रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा दिया। बुधवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 27 पैसे टूटकर 90.14 रुपये प्रति डॉलर पर खुला और कारोबार के दौरान 90.1175 के सर्वकालिक निचले स्तर को छू गया। यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है। पिछले तीन दिनों से रुपये में लगातार कमजोरी देखी जा रही है। सोमवार को रुपया 8 पैसे टूटकर 89.53 पर बंद हुआ, वहीं मंगलवार को यह 42 पैसे गिरकर 89.95 पर पहुंच गया था। बुधवार को खुलते ही यह 90 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर गया।
डॉलर की अत्यधिक मांग, कम सप्लाई और कच्चे तेल की महंगाई ने बढ़ाई मुश्किल
मुद्रा कारोबारियों के अनुसार, आयात करने वाली कंपनियों, विदेशी निवेशकों और बड़ी कॉरपोरेट्स द्वारा भारी मात्रा में डॉलर की खरीद की जा रही है, जिससे रुपया दबाव में है। कच्चे तेल की कीमतों में उछाल ने भी विदेशी मुद्रा बाजार पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया। डॉलर की मांग तेज और सप्लाई कम होने से रुपये पर लगातार गिरावट का दबाव बना हुआ है। इस गिरावट का सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये के कमजोर होने से आयात महंगा होगा, जिससे पेट्रोल-डीजल के अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और अन्य आयातित वस्तुओं पर महंगाई का खतरा बढ़ गया है।
आरबीआई का सीमित हस्तक्षेप भी गिरावट का बड़ा कारण
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले कुछ हफ्तों में आरबीआई ने रुपये को बचाने के लिए आक्रामक हस्तक्षेप नहीं किया। कई मौकों पर जब रुपया थोड़ा मजबूत हुआ, तब भी आरबीआई ने बाजार से डॉलर खरीद लिए, जिससे डॉलर की मांग बनी रही और रुपये पर दबाव बढ़ा। फिनरेक्स ट्रेज़री के वरिष्ठ अधिकारी अनिल कुमार भंसाली का कहना है कि “भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत है, जीडीपी ग्रोथ 8.2% है, लेकिन डॉलर की भारी मांग की वजह से रुपया दबा हुआ दिख रहा है।”
FPIs की बिकवाली और NDF बाजार की हलचल भी बनी वजह
डीएसपी फाइनेंस के एक्सपर्ट जयेश मेहता ने कहा कि एफपीआई की रोजाना बिकवाली, बिना आरबीआई सपोर्ट के एनडीएफ एक्सपायरी कवरिंग और विदेशी बाजारों में बड़ी डॉलर डील्स के रोलओवर का दबाव भी रुपये की कमजोरी का कारण है। मेहता का सुझाव है कि आरबीआई को शुक्रवार की मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए और मार्च 2026 तक 2 लाख करोड़ रुपये के ओपन मार्केट ऑपरेशन्स की घोषणा करनी चाहिए ताकि बाजार में तरलता बढ़े और रुपये को सहारा मिले।