आप भी त्योहारों के सीजन में करते हैं नो कॉस्ट EMI से शोपिंग, जान लीजिए इसका फायदा या नुकसान?

KNEWS DESK- त्योहारों का मौसम आते ही बाजारों में रौनक बढ़ जाती है। हर जगह सेल, ऑफर्स और डिस्काउंट का माहौल होता है। ऐसे समय में लोग टीवी, फ्रिज, मोबाइल, लैपटॉप या फर्नीचर जैसी बड़ी-बड़ी चीजें खरीदने की प्लानिंग करते हैं। लेकिन जब जेब अलाऊ न करे, तो ‘नो कॉस्ट EMI जैसे विकल्प काफी आकर्षक लगते हैं। सवाल यह है कि क्या यह सच में फायदेमंद सौदा है या इसके पीछे कुछ चालाकी छुपी होती है? आइए जानते हैं।

नो कॉस्ट EMI क्या होती है?

नो कॉस्ट EMI का मतलब है कि आप किसी प्रोडक्ट की कीमत को किश्तों में बांटकर चुका सकते हैं, वो भी बिना ब्याज के।
उदाहरण के लिए अगर कोई सामान ₹30,000 का है और आप 6 महीने की EMI चुनते हैं, तो हर महीने ₹5,000 चुकाकर आप उसे खरीद सकते हैं।

लेकिन असली गणित थोड़ा अलग है।

  • कई बार ब्याज की रकम को डिस्काउंट की जगह एडजस्ट कर दिया जाता है।
  • यानी जो छूट आपको कैश पेमेंट पर मिल सकती थी, वह आपको नहीं मिलती।
  • नतीजतन, आप सोचते हैं कि ब्याज नहीं लग रहा है, लेकिन असल में अप्रत्यक्ष रूप से आप कीमत पूरी चुका रहे होते हैं।

फायदे जब मददगार बनती है EMI

  • बजट फ्रेंडली– एक बार में बड़ी रकम देने की जरूरत नहीं, खर्च छोटे-छोटे हिस्सों में बंट जाता है।
  • त्योहारों में राहत– जब त्योहारों में खर्च ज्यादा होता है, तब EMI जेब पर ज्यादा बोझ नहीं डालती।
  • जरूरी सामान के लिए बेहतर– वॉशिंग मशीन, फ्रिज, लैपटॉप जैसी जरूरत की चीजें तुरंत खरीदी जा सकती हैं।

नुकसान जब ‘नो कॉस्ट’ बन जाती है ‘हिडन कॉस्ट’

  • हिडन चार्जेस– कई बार इसमें प्रोसेसिंग फीस, डिवाइस चार्ज या दूसरे अतिरिक्त खर्चे छिपे होते हैं।
  • छूट से वंचित– EMI लेने पर अक्सर सीधा डिस्काउंट या कैशबैक नहीं मिलता, जो फुल पेमेंट पर मिल सकता है।
  • क्रेडिट स्कोर पर असर– अगर आप समय पर EMI नहीं चुकाते, तो आपका क्रेडिट स्कोर खराब हो सकता है और भविष्य में लोन लेना मुश्किल हो जाता है।

कब सही है नो कॉस्ट EMI लेना?

  • जब आपके पास एकमुश्त पेमेंट करने के लिए पैसे नहीं हैं, लेकिन आप EMI समय पर चुका सकते हैं।
  • जब प्रोडक्ट पर कोई सीधा डिस्काउंट या कैशबैक ऑफर उपलब्ध नहीं है।
  • जब त्योहारों में आपको एक साथ कई सामान खरीदने हैं और बजट मैनेज करना जरूरी हो।

नो कॉस्ट EMI आकर्षक जरूर लगती है, लेकिन इसमें छुपे हुए चार्जेस और ऑफर्स की तुलना करना बेहद जरूरी है। समझदारी यही है कि आप केवल उन्हीं हालातों में इस विकल्प को चुनें, जब वाकई यह आपके बजट और जरूरत के अनुसार फायदेमंद हो। त्योहारों की खरीदारी में भावनाओं से ज्यादा सही गणित काम आता है।