क्या भारत-अमेरिका के बीच जल्द हो सकती है ट्रेड डील? जानें क्या है इसके संकेत

KNEWS DESK- भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर बातचीत अब निर्णायक चरण में पहुंचती दिख रही है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा दिए गए बयानों से संकेत मिला है कि वह भारत के साथ जल्द से जल्द यह डील करना चाहते हैं। दूसरी ओर, भारत की ओर से भी रुख सकारात्मक है, ताकि किसी भी तरह की रुकावट सामने न आए। अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत ने रूसी तेल खरीदना बंद कर दिया है, हालांकि भारत ने स्पष्ट किया है कि वह एक स्वतंत्र देश है और अपनी ऊर्जा नीतियों को खुद तय करता है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि रूस से भारत का तेल आयात वास्तव में घटा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि भारत धीरे-धीरे अपने व्यापारिक फोकस को अमेरिका की ओर मोड़ रहा है।

रूसी तेल की सप्लाई में कमी

व्यापारिक सूत्रों के अनुसार, अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच भारत का रूसी तेल आयात करीब 8.4% घटा है। इसका कारण रूस की ओर से दी जा रही छूट में कमी और सप्लाई की अनिश्चितता बताई जा रही है। भारत के रिफाइनर अब मध्य पूर्व और अमेरिका से अधिक तेल खरीदने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। सितंबर में भारत का रूसी तेल आयात 1.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन रहा, जो पिछले साल की तुलना में करीब 14% कम है।

अमेरिका से तेल और गैस खरीदने की तैयारी

भारत के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, देश के पास अमेरिका से अतिरिक्त 15 अरब डॉलर का तेल और गैस खरीदने की क्षमता है। यह कदम इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत अमेरिका के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा साझेदारी चाहता है। वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल के मुताबिक, भारत वर्तमान में अमेरिका से लगभग 12-13 अरब डॉलर का तेल खरीदता है, जिसे बढ़ाकर 25 अरब डॉलर तक ले जाया जा सकता है। इसके अलावा, सरकारी गैस कंपनियां अमेरिका के साथ लॉन्ग-टर्म गैस डील पर भी बातचीत कर रही हैं।

कच्चे तेल के दामों में गिरावट से भारत को राहत

इंटरनेशनल मार्केट में ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम 62 डॉलर प्रति बैरल तक आ गए हैं। इससे भारत को ऊर्जा आयात सस्ता पड़ रहा है और रूस पर निर्भरता कम करने में मदद मिल रही है। ओपेक देशों और अमेरिका की ओर से सप्लाई में इजाफा होने से भारत को वैकल्पिक स्रोतों से तेल खरीदना और आसान हो गया है।

यूरोप और ब्रिटेन के साथ बढ़ता व्यापारिक प्रभाव

भारत की यूरोप और ब्रिटेन के साथ हो रही ट्रेड डील्स ने भी अमेरिका को जल्द फैसला लेने पर मजबूर कर दिया है। यूरोप के कई देशों के साथ भारत के समझौते अंतिम चरण में हैं, जबकि ब्रिटेन के साथ डील लगभग तय मानी जा रही है। ऐसे में अमेरिका के लिए जरूरी हो गया है कि वह भारत के साथ जल्द से जल्द समझौता करे, ताकि एशियाई बाजारों में अपनी आर्थिक पकड़ बनाए रख सके।

शेयर बाजार में सकारात्मक रुझान

अक्टूबर महीने में भारतीय शेयर बाजार में करीब 3% की बढ़त दर्ज की गई है। विदेशी निवेशकों ने भी पिछले सप्ताह में 3 हजार करोड़ रुपये से अधिक की खरीदारी की है। यह बाजार का भरोसा दर्शाता है कि भारत और अमेरिका के बीच चल रही ट्रेड वार्ता सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रही है।

कम होती महंगाई से भारत की स्थिति मजबूत

भारत में रिटेल महंगाई दर 1.5% के स्तर पर आ गई है, जो पिछले आठ सालों का निचला स्तर है। अच्छी मानसूनी बारिश और कृषि उत्पादन बढ़ने से भारत को अमेरिका के साथ बातचीत में मजबूत स्थिति मिली है। वहीं, अमेरिका में महंगाई का दबाव बढ़ने से ट्रंप प्रशासन पर जल्दी समझौता करने का दबाव है।

भारत और अमेरिका दोनों के लिए यह ट्रेड डील केवल व्यापारिक समझौता नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदारी का प्रतीक है। रूस पर निर्भरता घटाना, ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना और निवेश माहौल को मजबूत करना—ये तीनों लक्ष्य इस डील से हासिल हो सकते हैं। आने वाले हफ्तों में अगर बातचीत में सहमति बन जाती है, तो यह दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए बड़ा मोड़ साबित हो सकता है।