KNEWS DESK – बॉलीवुड के प्रतिभाशाली अभिनेता मनोज बाजपेयी को 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में उनकी फिल्म गुलमोहर के लिए स्पेशल मेंशन अवॉर्ड से नवाजा जाएगा। यह सम्मान उनकी अद्भुत अभिनय क्षमता का प्रमाण है। अक्टूबर में होने वाले इस महत्वपूर्ण दिन के लिए मनोज विशेष रूप से तैयारी कर रहे हैं। हालांकि, उनके पहनावे की तैयारी में उनकी पत्नी शबाना रजा की सहमति सबसे जरूरी मानी जा रही है।
शबाना रजा की अहम भूमिका
मनोज बाजपेयी कहते हैं, “कपड़ों के बारे में मेरी समझ खास नहीं है। लेकिन मेरी पत्नी, शबाना, की फैशन के प्रति अच्छी समझ है क्योंकि वह खुद मॉडल रह चुकी हैं। मेरे कुछ डिजाइनर दोस्त भी हैं, जो मुझे सलाह देते हैं, लेकिन जो भी पहनूंगा, उसके लिए शबाना की मंजूरी जरूरी होगी।” मनोज ने यह भी हंसी-मजाक में कहा कि जब घर की सजावट होती है, तो उन्हें केवल बातचीत में इसलिए शामिल किया जाता है ताकि अगर कुछ गड़बड़ हो जाए, तो यह कहा जा सके कि वह भी इस फैसले का हिस्सा थे।
पहला राष्ट्रीय पुरस्कार और कपड़ों की जुगाड़
मनोज को जब पहली बार फिल्म सत्या के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था, तब उनके पास साधन सीमित थे। उन्होंने हंसते हुए बताया कि तब एक डिजाइनर से कपड़ों का जुगाड़ किया था, जिन्होंने बाद में उनकी कुछ फिल्मों में भी काम किया। उस समय, मनोज ने साधारण संसाधनों के साथ अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाए थे, और आज उन्हें बड़ा सम्मान प्राप्त हो रहा है।
सरल जीवन का नजरिया
मनोज बाजपेयी की सफलता उनकी कड़ी मेहनत और प्रतिभा का परिणाम है। लेकिन वह इस सफलता को बहुत साधारण तरीके से लेते हैं। वह कहते हैं, “आज मेरे पास जो सुख-सुविधाएं हैं, वह मेरे काम की वजह से हैं, न कि बड़ी गाड़ी की वजह से। मैं अगर रिक्शा से जाता हूं, तो इसका मतलब है कि मेरे पास और कोई चारा नहीं होता।” उनका यह दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि वे मटेरियलिस्टिक चीजों पर निर्भर नहीं रहते।
उन्होंने अपने गुरू बैरी जॉन का उद्धरण देते हुए कहा, “नेवर वेट फॉर द कार,” जिसका अर्थ है कि भौतिक वस्त्रों के इंतजार में समय बर्बाद मत करो। उनके जीवन का यह सिद्धांत उनके सादगी और मेहनत की कहानी कहता है।
पारिवारिक जिम्मेदारियां और सादगी
मनोज बाजपेयी के पास आज बड़े घर और गाड़ियाँ हैं, लेकिन उनके लिए सादगी और पारिवारिक जिम्मेदारियों का महत्व अधिक है। उनकी पत्नी शबाना कभी-कभी उन्हें सब्जियाँ लाने का काम सौंप देती हैं, जिसे वह पूरे दिल से निभाते हैं। वह कहते हैं, “यह मेरे घर का काम है, अगर मैं नहीं करूंगा तो कौन करेगा?” इस बात से साफ जाहिर होता है कि मनोज ने अपनी स्टारडम के बावजूद जीवन की सरलता और जिम्मेदारियों को कभी नहीं छोड़ा।
एक सादगी भरे सितारे का सफर
मनोज बाजपेयी का सफर उस ऑटो रिक्शा से शुरू हुआ था, जिसमें बैठकर वह अपने इंटरव्यू के लिए जाते थे। और आज वह बड़े पुरस्कार समारोहों का हिस्सा हैं, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के उन साधारण दिनों को कभी नहीं भुलाया। उनके लिए जीवन की सफलता और सादगी के बीच एक संतुलन बनाना सबसे महत्वपूर्ण है।
मनोज की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि चाहे जितनी भी सफलता मिले, इंसान को अपने मूल्यों और सादगी से जुड़े रहना चाहिए। उनके इस सादगी भरे दृष्टिकोण से न केवल उनके फैंस प्रेरित होते हैं, बल्कि वह जीवन में एक आदर्श भी प्रस्तुत करते हैं।