मां और पत्नी को लेकर जावेद अख्तर ने किया रिएक्ट, कहा – ‘अन्य महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव…’

KNEWS DESK – जावेद अख्तर बॉलीवुड के प्रतिष्ठित पटकथा लेखक और गीतकार के रूप में जाने जाते हैं, जावेद ने हाल ही में अपने विचार साझा किए हैं कि कैसे फिल्मी जगत में “मां” के किरदार को स्टीरियोटाइप बना दिया गया है। अख्तर के लेखन में मां के किरदार को एक विशेष स्थान मिला है, उन्होंने माना कि इस भूमिका को बहुत अधिक नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिसके चलते इसका असर अब कमजोर पड़ चुका है।

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“मां” के किरदार का महत्व 

1975 की फिल्म “दीवार” में शशि कपूर द्वारा बोले गए डायलॉग “मेरे पास मां है” को आज भी बॉलीवुड के सबसे यादगार संवादों में गिना जाता है। यह डायलॉग न सिर्फ एक पीढ़ी की भावनाओं का प्रतीक बना, बल्कि आज भी फिल्म निर्माताओं को प्रभावित करता है। हालांकि, हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम में, जावेद अख्तर ने इस बात पर जोर दिया कि मां का किरदार अब भी जरूरी है, लेकिन उसे दिखाने का तरीका बदलने की जरूरत है।

समाज में मां और अन्य महिलाओं के प्रति व्यवहार

जावेद अख्तर ने यह भी कहा कि जिस समाज में मां को अत्यधिक महत्ता दी जाती है, वहां अन्य महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव होने की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने स्पष्ट किया, “किसी भी समाज में जहां मां को बहुत आदर दिया जाता है, वहां महिलाएं मुश्किल में होती हैं। लोग कहते हैं ‘मां की पूजा होनी चाहिए,’ लेकिन उन महिलाओं का क्या जिनकी पूजा नहीं होती, जैसे आपकी पत्नी। मेरी मां का सम्मान होना चाहिए, लेकिन मेरे बच्चों की मां का क्या? ये सब दिखावा है।”

यह विचार उनके लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि जावेद अख्तर और उनके साथी सलीम खान ने बचपन में अपनी मां को खो दिया था। इस घटना का असर उनकी लेखनी में भी देखने को मिलता है, जहां “दीवार,” “त्रिशूल,” और “शक्ति” जैसी फिल्मों में मां के किरदार को सशक्त तरीके से पेश किया गया है।

मां के किरदार को स्टीरियोटाइप करने की आलोचना

जावेद अख्तर ने मां के किरदार को स्टीरियोटाइप करने की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “मां को अब नए और ताजगी भरे अंदाज में दिखाना जरूरी हो गया है, लेकिन इसे बहुत ज्यादा भी नहीं करना चाहिए। ‘मेरे पास मां है’ जैसा सिंपल डायलॉग अब भी असरदार हो सकता है क्योंकि ये कॉम्प्लेक्स नहीं है, लेकिन मां के किरदार को जिस तरह से स्टीरियोटाइप किया गया है और इसका बार-बार इस्तेमाल हुआ है, उससे लोग अब इससे दूर होते जा रहे हैं।”

डॉक्यूमेंट्री “एंग्री यंग मेन” और मौजूदा प्रतिक्रियाएं

जावेद अख्तर और सलीम खान इन दिनों अपनी डॉक्यूमेंट्री “एंग्री यंग मेन” को लेकर चर्चा में हैं, जो उनकी फिल्मों के प्रभाव और उनके योगदान को दर्शाती है। इस डॉक्यूमेंट्री को दर्शकों से मिला-जुला रिस्पॉन्स मिल रहा है, लेकिन अख्तर का मानना है कि यह फिल्म उनके और सलीम खान के करियर और समाज पर उनके प्रभाव को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

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