मनोरंजन, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की प्रथम पुण्यतिथि पर उनके जीवन काल की सफलता और कठिनाइयों से जुड़ी चर्चा करेंगे. 6 फरवरी 2022 को हमने देश के अनमोल रत्न को खो दिया था. सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपनी अंतिम सांस ली. उनकी शख्सियत को बयां करने के लिए स्वर साम्राज्ञी, बुलबुले हिंद और कोकिला जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया, लेकिन संगीत में उनके योगदान के आगे ये विश्लेषण भी फीके साबित होते थे. उन्होंने 20 से अधिक भाषाओं में 50 हजार से अधिक गाने गाए. 1991 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने भी यह माना कि लता मंगेशकर दुनियाभर में सबसे अधिक गाने रिकॉर्ड कराने वाली गायिका हैं.
लता जी का किया मार्गदर्शन
1943-44 के दौर में कोल्हापुर में एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी. उस वक्त गायिका नूरजहां फिल्म इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम थीं. शूटिंग के दौरान उन्हें एक बच्ची से मिलाया गया जो उस फिल्म में एक छोटा सा रोल निभाने वहां पहुंची थी. उस बच्ची का नाम था लता मंगेशकर. नूरजहां से बच्ची की मुलाकात कराते वक्त यह बताया गया कि यह गाना बहुत अच्छा गाती है. नूरजहां ने लता जी को गाना सुनने को कहा.
बच्ची ने जब गाना सुनाया तो नूरजहां अचंभित रह गई उनको यकीन नही हो रहा था कि इतनी सुरीली आवाज होते हुए भी वो फिल्म में एक किरदार निभाने आई है. उन्होंने कहा, तुम बहुत अच्छा गाती हो. रियाज करती रहना. भविष्य में तुम सब के मन को भा लोगी और लता जी ने उनकी बात मानी, वो बच्ची सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर बनी.
आनंदघन नाम का रहस्य
लता मंगेशकर जी को उनके सम्मान में कई नामों से जाना गया जैसे स्वर कोकिला, लेकिन एक दिन उनके एक रहस्यमई नाम की सच्चाई सबको पता चली. गायिका होने के साथ उन्होंने 60 के दशक में कई फिल्मों के लिए संगीत से सब के मन को लुभाया. उन्होंने चार मराठी फिल्मों के लिए संगीत भी तैयार किया. बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि ऋषिकेश मुखर्जी ने लता मंगेशकर को अपनी फिल्म आनंद का संगीत देने को कहा था, लेकिन उनहोंने इंकार कर दिया था.
उन्होंने बहुत अधिक फिल्मों के लिए बतौर संगीतकार काम किया, लेकिन संगीतकार के तौर पर फिल्म के क्रेडिट में नाम लिखा जाता था आनंदघन. यह लता मंगेशकर था. वो हमेशा अपना नाम बदलकर फिल्मों के लिए संगीत देती थीं. हालांकि, उन्होंने गायिकी पर अधिक ध्यान दिया. मराठी फ़िल्म साधी माणस को सर्वश्रेष्ठ संगीत का पुरस्कार की घोषणा हुई तो वो अपनी सीट पर शांत बैठी थीं। तब वहां किसी ने कहा कि आनंघन कोई और नहीं बल्कि लता मंगेशकर हैं.
धीमे जहर की कहानी
लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर ने अपनी किताब में एक चौंकाने वाला खुलासा किया था. उन्हें दिए इंटरव्यू में स्वर कोकिला ने बताया था. 1962 में एक बार बीमार हो गई तो डॉक्टर ने जांच लिखी. लैब में पेट का एक्सरे लिया गया. जांच रिपोर्ट देखने के बाद मुझे बताया गया कि मुझे स्लो पॉयजन यानी धीमा जहर दिया गया है. हमारे घर में खाना बनाने का काम एक नौकर करता था, उस दिन वो बिना बताए चला गया. उसने पैसे भी नहीं लिए. हम जानते भी नहीं थे कि वो कौन था. मैं करीब तीन महीने तक बिस्तर पर रही। उस दौर में महरूह साहब ने मेरी सहायता की.
कई पदकों से किया गया सम्मानित
साल 1969 में लता जी को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. साल 1989 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. साल 1999 में लता जी को पद्म विभूषण दिया गया था, जिसके बाद साल 2001 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया और साल 2008 में उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया था.
साल 1972 में फिल्म ‘परिचय’ के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड दिया गया था। साल 1974 में फिल्म ‘कोरा कागज’ के लिए उन्हें सम्मानित किया गया था.
नसरीन मुन्नी कबीर अपनी किताब में लिखती हैं कि 1957 में शंकर जयकिशन को सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार दिया जाने वाला था. ऐसे में वो लता मंगेशकर के पास आए और एक गाना गाने को कहा. ऐसे में उन्होंने गाना गाने से इंकार करते हुए कहा, फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ गायक या गीतकार को तो पुरस्कार देता नहीं है, इसलिए फिल्मफेयर के लिए तब तक नहीं गाऊंगी, जब तक प्लेबैक सिंगर और गीतकारों के लिए भी पुरस्कारों की घोषणा नहीं की जाता. 1959 में गायकों के लिए एक कैटेगरी शुरू हुई और पहला अवॉर्ड फ़िल्म मधुमती के गाने आजा रे परदेसी के लिए इन्हें मिला.
सुर साम्राज्ञी कोकिला लता मंगेशकर जी को भावभीनी श्रद्धांजलि ???