कर्नाटक चुनाव में विपक्ष क्यों उठा रहा जातीय जनगणना का मुद्दा… किसका फायदा और किसका नुकसान ? जानें पूरा गणित

कर्नाटक चुनाव, कर्नाटक में मई में विधानसभा चुनाव होने हे. जिसको लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों ने प्रचार प्रसार शुरू कर दिया है. वहीं रविवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व सांसद राहुल गांधी ने रविवार को चुनाव के लिए पहली रैली इस रैली में राहुल जातीय  जनगणना का मुद्दा को लेकर बीजेपी और पीएम मोदी पर जमकर हमला बोला. राहुल ने कहा पीएम 2011 के जातीय जनगणना के आंकड़े जारी कर दें, मैं उनको चुनौती देता हूं.

 

रविवार को राहुल गांधी ने कर्नाटक में पहली चुनावी रैली के दौरान कहा, ‘यूपीए ने 2011 में जाति आधारित जनगणना की. इसमें सभी जातियों के आंकड़े हैं. प्रधानमंत्री जी, आप ओबीसी की बात करते हैं. उस डेटा को सार्वजनिक करें. देश को बताएं कि देश में कितने ओबीसी, दलित और आदिवासी हैं.’

राहुल ने आगे कहा कि अगर सभी को देश के विकास का हिस्सा बनना है तो प्रत्येक समुदाय की आबादी का पता लगाना जरूरी है. कृपया जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करें ताकि देश को पता चले कि ओबीसी, दलितों और आदिवासियों की जनसंख्या कितनी है. यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो यह ओबीसी का अपमान है. आरक्षण पर से 50 प्रतिशत की सीमा को हटा दें.

कांग्रेस नेता ने यह भी बताया कि सचिव भारत सरकार की रीढ़ होते हैं, लेकिन केंद्र सरकार में दलित, आदिवासी और ओबीसी समुदायों से संबंध रखने वाले केवल सात प्रतिशत सचिव हैं.

कर्नाटक में जातीय जनगणना का मुद्दा कितना फायदेमंद

‘देश में पिछड़े वर्ग यानी ओबीसी की आबादी करीब 50 फीसदी से ज्यादा है. 2014 के बाद से ओबीसी वर्ग का ज्यादा वोट भाजपा को ही मिला है. विपक्ष में जितने दल हैं, उनमें शामिल ज्यादातर नेता भी ओबीसी वर्ग के ही हैं. ऐसे में सभी पार्टियों का फोकस इन वोटर्स पर है.’

‘राहुल गांधी को भाजपा ने मोदी सरनेम विवाद में ओबीसी विरोधी बताया. इसी का खूब प्रचार किया गया. ऐसे में राहुल गांधी ने बड़े ही साफ तरीके से खुद का बचाव करते हुए भाजपा पर ही अटैक करना शुरू कर दिया है. राहुल को उम्मीद है कि इससे उनकी पार्टी को न सिर्फ कर्नाटक चुनाव में फायदा हो सकता है, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी बढ़त मिल सकती है.’

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