Uttarakhand Silkyara Tunnel: मशीनें फेल, रैट होल माइनिंग ने बचाई मजदूरों की जान, जानें क्यों नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने लगाया था इस पर बैन

KNEWS DESK- सिलक्यारा टनल में चल रहे रेसक्यू ऑपरेशन का आज 17 वां दिन है। इस रेसक्यू ऑपरेशन में सभी मशीनें फेल हो गई और आखिर में रैट होल माइनिंग ने मजदूरों की जान बचाई है। अब ये रैट होल माइनिंग क्या है? और क्यों इसको नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बैन कर दिया था ये आपको बताते हैं?

क्या होता है रैट होल माइनिंग?

सिल्क्यारा सुरंग में बाकी हॉरिजेंटल खुदाई मैन्युअल विधि से की जा रही है। इसमें सुरंग बनाने में विशेष कौशल रखने वाले व्यक्तियों को चुना गया है। इन्हें रैट-होल माइनर कहा जाता है। रैट-होल माइनिंग अत्यंत संकीर्ण सुरंगों में की जाती है। कोयला निकालने के लिए माइनर्स हॉरिजेंटल सुरंगों में सैकड़ों फीट नीचे उतरते हैं। चुनौतीपूर्ण इलाकों खासकर मेघालय में कोयला निकालने के लिए इसका विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

क्यों नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने किया बैन?

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में मजदूरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। एनजीटी द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद, अवैध रूप से रैट-होल खनन जारी है। मेघालय में हर साल कई मजदूरों को रैट होल माइनिंग के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ती है। यही वजह है कि इसे लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है।

नोट- उत्तराखंड सरकार के नोडल अधिकारी नीरज खैरवाल ने स्पष्ट किया कि रेस्क्यू साइट पर लाए गए लोग रैट माइनर्स नहीं बल्कि इस तकनीक में विशेषज्ञ लोग हैं।

मैन्युअल हॉरिजेंटल ड्रिलिंग के लिए दो प्राइवेट कंपनियों की दो टीमों को लगाया। एक टीम में 5 एक्सपर्ट हैं, जबकि दूसरी में 7। इन 12 सदस्यों को कई टीमों में बांटा गया। इन टीमों ने बचे हुए मलबे को बाहर निकाला।

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