KNEWS DESK- उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। आमतौर पर उपचुनावों से परहेज करने वाली मायावती इस बार पूरी तरह से सक्रिय हैं और पार्टी ने प्रमुख सीटों पर दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर चुनावी मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है।
फूलपुर: दलित उम्मीदवार का दमखम
फूलपुर विधानसभा सीट पर बसपा ने पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवबरन पासी को प्रत्याशी बनाया है। रविवार को आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में शिवबरन पासी के नाम की घोषणा की गई। यह सीट पहले बीजेपी के पास थी, जहां से प्रवीण पटेल विधायक थे। लोकसभा चुनाव में प्रवीण पटेल सांसद निर्वाचित होने के बाद यह सीट रिक्त हुई है। अब, शिवबरन पासी की उम्मीदवारी से यह सीट दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश का हिस्सा बन गई है।
मिल्कीपुर: पूर्व प्रत्याशी का पुनरागमन
अयोध्या की मिल्कीपुर सीट से बसपा ने रामगोपाल कोरी को प्रत्याशी बनाया है। रामगोपाल कोरी 2017 में भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके थे, लेकिन तब उन्हें तीसरा स्थान मिला था। गोरखनाथ बाबा ने उस समय बीजेपी के लिए जीत हासिल की थी। 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने गोरखनाथ बाबा को हराकर यह सीट जीत ली थी। लोकसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद के सांसद बनने से यह सीट खाली हुई है। रामगोपाल कोरी की उम्मीदवारी से बसपा दलित वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है।
मीरापुर: चंद्रशेखर आजाद के करीबी का चुनावी मैदान
मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट पर बसपा ने चंद्रशेखर आजाद के करीबी शाह नजर को प्रत्याशी बनाया है। शाह नजर नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं और उनके समर्थन से मीरापुर सीट पर भी दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है। शाह नजर की उम्मीदवारी से इस सीट पर भी एक नई राजनीतिक हलचल देखने को मिल रही है।
मायावती की प्रत्याशी घोषणाओं ने साफ संकेत दिया है कि बसपा इस बार दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश कर रही है। उपचुनाव के लिए दलित उम्मीदवारों की उम्मीदवारी से बसपा ने चुनावी रणनीति में एक नई दिशा दी है, जिससे बाकी पार्टियों के लिए भी चुनौती बढ़ सकती है। यह देखा जाना दिलचस्प होगा कि बसपा की ये नई रणनीतियां चुनावी मैदान में कितनी सफल होती हैं और कितने प्रभावी ढंग से दलित वोट बैंक को अपने पाले में करती हैं। इन आगामी उपचुनावों से न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई हलचल देखने को मिलेगी, बल्कि दलित वोट बैंक के महत्व को लेकर भी एक नई परिप्रेक्ष्य सामने आएगा।