SC का बड़ा फैसला, राज्यपाल अनिश्चितकाल तक बिलों को रोक नहीं सकते, लेकिन उन पर समयसीमा तय करना असंवैधानिक

KNEWS DESK- सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस (राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए 14 संवैधानिक सवालों) पर एक अहम राय दी है। कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल किसी राज्य विधानसभा से पारित विधेयक (बिल) को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते, लेकिन साथ ही यह स्पष्ट किया है कि उन पर निर्णय लेने के लिए एक कठोर समयसीमा तय करना संवैधानिक सिद्धांतों के उल्लंघन में पड़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि राज्यपालों के पास यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वे बिलों को “अलमारी में रख दें” और कभी फैसला न लें। यदि राज्यपाल बिना किसी कारण के बिल पर फैसले को टालते रहें, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के उल्लंघन जैसा होगा। अदालत ने यह कहा कि न्यायपालिका गवर्नर या राष्ट्रपति पर बिलों पर निर्णय लेने के लिए “फिक्स डेडलाइन” लागू नहीं कर सकती, क्योंकि यह पावर के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धांत के खिलाफ है।

कोर्ट ने राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों की सीमाएं भी स्पष्ट की हैं। उनके पास सीमित विकल्प हैं- या विधेयक को राष्ट्रपति के पास रिज़र्व करना। विधेयक को मंजूरी देना, विधेयक को वापस विधानसभा भेजना (पुनर्विचार के लिए)।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि यह अदालतों का काम नहीं है कि वे विधायी प्रक्रिया में बार-बार हस्तक्षेप करें। लेकिन, अगर राज्यपाल “बिना वजह” बिलों पर अनिश्चितकाल तक देरी करते हैं, तो उन पर न्यायिक समीक्षा हो सकती है।

कोर्ट ने जोर दिया है कि राज्यपाल को यह अधिकार है कि वे सलाह-मंत्रिपरिषद की बात सुनें, लेकिन यदि वह एकतरफा तरीके से बिना सहमति बिलों को रोकें, तो यह संघीय ढांचे के हितों को क्षति पहुंचाता है।