ना चला दलित मुस्लिम गठजोड़ ना दिखाई दिया MY फैक्टर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव पर भाजपा अपना परचम लहराने के बाद भी भाजपा आत्ममुग्ध होने की स्थिति में नजर नहीं आ रही. नगर निकाय चुनाव के नतीजों ने सभी पार्टियों को एक संदेश दिया है. समाजवादी पार्टी के लिए निकाय चुनाव परिणाम एक नसीहत है तो बसपा के लिए पुराने प्रयोग छोड़ नई रणनीति बनाने सीख. आने वाले समय में यदि आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की ए आई एम आई एम को नजरअंदाज किया तो यह मुख्य राजनीतिक दलों के लिए बहुत भारी पड़ सकता है. इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी तीनों के लिए साफ संकेत उभर कर आए. समाजवादी पार्टी जहां अपनी लचर रणनीति, प्रत्याशी चयन में देरी के कारण हारी तो वहीं सपा के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की रणनीति कारगर सिद्ध हुई. बहुजन समाजवादी पार्टी का मुस्लिम दलित समीकरण पूरी तरह फेल हुआ. तो विधानसभा चुनाव के बाद नगर निकाय चुनाव में भी बसपा सुप्रीमो को करारा झटका लगा.
बसपा का दलित मुस्लिम गठजोड़ फ्लॉप
2017 के चुनावों में जहां बहुजन समाजवादी पार्टी के दो मेयर, 29 पालिका अध्यक्ष और 45 पंचायत अध्यक्ष ने जीत हासिल की थी, तो इस बार मुस्लिम गर्ल दलित गठजोड़ के सहारे वह 2 का 6 करने की उम्मीद में मैदान मैं उतरी. बहुजन समाज पार्टी ने महापौर पद के लिए 17 में से 11 प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर मुस्लिम चेहरों पर दांव खेला. बसपा मुस्लिम दलित गठजोड़ के सहारे इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को रोकने की रणनीति पर काम कर रही थी लेकिन यह गणित पूरी तरह फ्लॉप हुई. मुस्लिम बंटें,तो दलितों का वोट भी अन्य पार्टियों में गया.
संगठनात्मक रणनीति, चयन से लेकर प्रचार तक में लचर नजर आई सपा
इस बार समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा. सपा संगठनात्मक तैयारी में भी पिछड़ी हुई नजर आई. इसका मुख्य कारण चुनाव प्रचार में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाना रहा. चुनावों से ठीक कुछ दिन पहले अखिलेश यादव मैदान में उतरे. गोरखपुर से चुनाव प्रचार की शुरुआत की. लखनऊ में मेट्रो की यात्रा की. मेरठ, अलीगढ़ गए. कानपुर में डिंपल ने रोड शो किया लेकिन चुनाव परिणाम में पास नहीं हुए. 2017 सपा के जहां 15.54 फ़ीसदी पार्षद थे तो इस बार यह घटकर 13. 45 फ़ीसदी ही रह गए. समाजवादी पार्टी प्रत्याशी के चयन से लेकर प्रचार तक में दिशाहीन नजर आई.
जीत का श्रेय योगी को लेकिन फिर भी रहना होगा सचेत
भारतीय जनता पार्टी कि निकाय चुनाव में यह ऐतिहासिक जीत हुई है इसका पूरा श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दिया जा रहा है. योगी ने अपने प्रत्याशियों की जीत के लिए जनसभाओं से लेकर रोडशो तक किए ,लेकिन कई जगह पार्टी के भीतर ही उठापटक की भी स्थिति दिखायी दी। विधायक से लेकर सांसद तक अपने मनचाहे प्रत्याशियों को टिकट न मिलने के कारण भीतर घात करने से भी नहीं चूके तो वहीं कुछ पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बागियों को लड़ा कर भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी. लोकसभा चुनाव के पहले इस तरह के बागियों को यदि भाजपा साफ संकेत नहीं देती है तो आने वाले चुनाव में उसके लिए दिल्ली का रास्ता आसान नहीं होगा.