डिजिटल डेस्क- संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और कश्मीरी अलगाववादी मकबूल भट की कब्रों से जुड़ी याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा कि “किस कानून का उल्लंघन हुआ है? केवल भावनाओं या इच्छाओं के आधार पर कोर्ट कोई आदेश नहीं दे सकता।
12 साल बाद इस मुद्दे को उठाना उचित नहीं
कोर्ट ने कहा कि अफजल गुरु का अंतिम संस्कार 2013 में हो चुका है और अब 12 साल बाद इस मुद्दे को उठाना उचित नहीं। बेंच ने साफ किया कि इतने साल बाद किसी सम्मानपूर्वक किए गए अंतिम संस्कार को चुनौती देना आसान नहीं है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि कब्रों पर लोग “जियारत” यानी तीर्थ करने आते हैं, जिससे माहौल प्रभावित होता है। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि इसके समर्थन में कोई ठोस सबूत या डेटा पेश नहीं किया गया। अदालत ने कहा कि यह बेहद संवेदनशील मामला है और इसमें बिना सबूत के किसी तरह का हस्तक्षेप संभव नहीं।
कौन था अफजल गुरु?
अफजल गुरु 2001 में संसद हमले का दोषी ठहराया गया था। 13 दिसंबर 2001 को संसद पर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने हमला किया था। अफजल को आतंकियों को मदद करने और हमले की साजिश में शामिल होने का दोषी पाया गया। उसे 2001 में गिरफ्तार किया गया और 2013 में तिहाड़ जेल में फांसी दी गई।
कौन था मकबूल भट?
मकबूल भट, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) का संस्थापक और कश्मीरी अलगाववादी नेता था। उसे एक पुलिसकर्मी की हत्या और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी ठहराया गया। 1984 में तिहाड़ जेल में उसे फांसी दी गई और उसका शव भी जेल परिसर में ही दफनाया गया। दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ किया कि इतिहास को बदलना न्यायालय का काम नहीं है, और जब अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ हो चुका है तो अब इस पर आपत्ति जताने का कोई औचित्य नहीं बनता।