तहव्वुर राणा को भारत में मिल सकती है मौत की सजा, प्रत्यर्पण में नहीं रखी गई कोई शर्त

KNEWS DESK- मुंबई आतंकी हमले के प्रमुख आरोपियों में से एक तहव्वुर हुसैन राणा को हाल ही में अमेरिका से प्रत्यर्पण के जरिए भारत लाया गया है। अब उसके खिलाफ भारत की अदालत में गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जाएगा, जिसमें मृत्युदंड तक का प्रावधान है। भारत और अमेरिका के बीच हुए प्रत्यर्पण समझौते में मौत की सजा को लेकर कोई विशेष शर्त नहीं जोड़ी गई, जिससे इस बात की संभावना और प्रबल हो जाती है कि यदि दोष सिद्ध हुआ, तो राणा को फांसी की सजा भी सुनाई जा सकती है।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने तहव्वुर राणा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) की कई गंभीर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है, जिनमें शामिल हैं:

  • धारा 120B – आपराधिक साजिश

  • धारा 121 – भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना

  • धारा 121A – युद्ध छेड़ने की साजिश

  • धारा 302 – हत्या

  • धारा 468 और 471 – जालसाजी और नकली दस्तावेजों का प्रयोग

  • UAPA की धारा 18 और 20 – आतंकी साजिश और आतंकवादी संगठन से जुड़ाव

इन धाराओं में से कई ऐसी हैं जिनमें मृत्युदंड का प्रावधान है, विशेष रूप से हत्या और युद्ध जैसे अपराधों के लिए।

भारत और अमेरिका के बीच 1997 में प्रत्यर्पण संधि हुई थी, जिसके तहत एक-दूसरे के देश में छिपे अपराधियों को कानूनी प्रक्रिया के तहत सौंपा जा सकता है। हालांकि अक्सर ऐसे मामलों में, विशेष रूप से जब मृत्युदंड की आशंका हो, तो प्रत्यर्पण देने वाला देश यह शर्त रखता है कि आरोपी को फांसी नहीं दी जाएगी।

  • उदाहरण के तौर पर, अबू सलेम के प्रत्यर्पण के दौरान भारत ने पुर्तगाल को यह गारंटी दी थी कि उसे फांसी की सजा नहीं दी जाएगी।

  • लेकिन राणा के मामले में अमेरिका ने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी, और भारत ने भी कोई आश्वासन नहीं दिया।

इसका सीधा अर्थ यह है कि भारतीय अदालतें यदि उसे दोषी पाती हैं, तो मृत्युदंड देने से कोई कानूनी अड़चन नहीं होगी।

कुछ मानवाधिकार संगठनों द्वारा यह तर्क दिया जा सकता है कि नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR) और इसके दूसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल, जिनका उद्देश्य मृत्युदंड समाप्त करना है, इस प्रक्रिया में आ सकते हैं।

  • लेकिन भारत ने इस वैकल्पिक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

  • अमेरिका में भी मृत्युदंड लागू है, इसलिए यह अंतरराष्ट्रीय प्रावधान राणा के मामले में लागू नहीं होता।

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