बिहार में जाति जनगणना पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, जानिए क्यो?

KNEWS DESK… सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जाति सर्वेक्षण मामले पर तत्काल रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट कल यानी 18 अगस्त को मामले की सुनवाई करेगा. आपको बता दें कि हाईकोर्ट के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

दरअसल आपको बता दें कि 1 अगस्त को पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जाति आधारित गणना को मंजूरी दे दी थी. पटना हाईकोर्ट के इसी फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. जिस पर आज यानी 17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने तक इस पर रोक लगा दी है.  इससे पहले 7 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई थी. उस दौरान कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा था कि अगर 80 फीसदी काम हो चुका है तो 90 फीसदी भी हो जाएगा, इससे क्या फर्क पड़ेगा? तत्काल रोक की क्या जरूरत है? बिहार के सीएम नीतीश कुमार के अनुसार बिहार सरकार जाति की गणना नहीं, बल्कि सिर्फ लोगों की आर्थिक स्थिति और उनकी जाति से जुड़ी जानकारी हासिल करना चाहती है. इससे उनकी बेहतरी के लिए योजनाएं बनाई जा सकेंगी. सरकार उन्हें बेहतर सेवा देने के लिए एक ग्राफ तैयार कर सकती है.

हाईकोर्ट ने वैध करार दिया था

जानकारी के लिए बता दें कि पटना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार का यह काम नियमों के अनुसार है. बिल्कुल वैध भी. राज्य सरकार चाहे तो गिनती करा सकती है. हाईकोर्ट ने बिहार में जाति आधारित सर्वे को ‘कानूनी’ करार दिया था. बिहार सरकार ने इसके लिए 500 करोड़ रुपये खर्च करने की भी योजना बनाई है.

देश में पहली बार 1931 में हुई थी जाति जनगणना

गौरबतल हो कि भारत में पहली जाति जनगणना 1931 में हुई थी. 1941 में इसका डेटा भी इकट्ठा किया गया था, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था. जाति और सामाजिक-आर्थिक जनगणना 2011 में आयोजित की गई थी, लेकिन कई विसंगतियों के कारण इसका डेटा जारी नहीं किया गया था.

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