KNEWS DESK- पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में न्यायाधीशों को सोशल मीडिया से उत्पन्न हो रहे खतरों के प्रति सावधान रहने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि विशेष रुचि समूह और दबाव बनाने वाले संगठन सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर न्यायालयों के निर्णयों और न्यायाधीशों के विचारों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।
रविवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि आजकल सोशल मीडिया पर 20 सेकंड के वीडियो के आधार पर राय बनाई जाती है, जो एक बड़ा खतरा है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि विशेष समूह सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर न्यायालयों पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।
“क्या यह सच में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है?”
पूर्व CJI ने यह भी कहा कि अगर सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों को निशाना बनाया जाता है तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से आगे बढ़कर एक मौलिक प्रश्न उठाता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक नागरिक को यह समझने का अधिकार है कि किसी निर्णय का आधार क्या है, लेकिन जब यह न्यायाधीशों पर व्यक्तिगत हमलों में बदलता है, तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे से बाहर निकल जाता है।
ट्रोलिंग और न्यायालयों पर दबाव
चंद्रचूड़ ने न्यायाधीशों को सलाह दी कि वे सोशल मीडिया पर होने वाली ट्रोलिंग और दबाव के बारे में सतर्क रहें, क्योंकि वे लगातार विशेष हित समूहों के हमलों का सामना कर रहे हैं, जो न्यायालयों में होने वाले फैसलों को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका
पूर्व CJI ने लोकतंत्र में न्यायपालिका की अहम भूमिका पर भी बात की। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र में कानूनों की वैधता तय करने की शक्ति संवैधानिक अदालतों को सौंपी गई है।” उन्होंने यह भी कहा कि संविधान के तहत न्यायालयों का कर्तव्य है कि वे मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर हस्तक्षेप करें, क्योंकि नीति निर्माण विधायिका का कार्य होता है, लेकिन उसकी वैधता तय करना न्यायालयों की जिम्मेदारी है।
कॉलेजियम प्रणाली और न्यायाधीशों की नियुक्ति
चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम प्रणाली का भी बचाव किया और कहा कि इसमें कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका की विशेष भूमिका की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही, उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नियुक्ति प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता हो।
सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में प्रवेश
चंद्रचूड़ ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के राजनीति में प्रवेश के बारे में भी अपनी राय दी। उन्होंने कहा कि संविधान या कानून में इसका कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों को यह तय करना चाहिए कि उनके फैसलों का प्रभाव उनके सार्वजनिक जीवन पर पड़ेगा या नहीं।