संसद में पारित तंत्र की अहमियत पर बोले सभापति धनखड़, कहा- न्यायिक जवाबदेही का समाधान संभव था

KNEWS DESK-  राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने एक महत्वपूर्ण बयान में कहा कि अगर संसद में सर्वसम्मति से पारित किए गए तंत्र को लागू किया गया होता तो न्यायिक जवाबदेही के मुद्दे का समाधान पहले ही हो चुका होता। उन्होंने 2014 में संसद द्वारा पारित किए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के कानून का उल्लेख किए बिना इस पर अपनी चिंता व्यक्त की।

धनखड़ ने इस संदर्भ में कहा कि 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी को असांविधानिक करार दिया था, लेकिन अगर उस तंत्र को लागू किया गया होता तो न्यायपालिका में जवाबदेही सुनिश्चित हो सकती थी। उन्होंने कहा, “जिस तंत्र को इस सदन ने सर्वसम्मति से पारित किया था, वह बिना किसी मतभेद के था और इसे सरकार की पहल का समर्थन मिला था। यह एक ऐतिहासिक कदम था, जिसे भारतीय संसद ने पास किया था, और 16 राज्य विधानसभाओं का भी समर्थन प्राप्त था। इसके बाद संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत माननीय राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किए थे।”

सभापति ने कहा कि अगर इस समस्या का समाधान पहले ही किया गया होता, तो शायद आज हमें ऐसे मुद्दों का सामना नहीं करना पड़ता। उन्होंने तंत्र के समर्थन में संसद से मिले अभूतपूर्व समर्थन का जिक्र करते हुए इसे न्यायिक जवाबदेही के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

इसके बाद, दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के मुद्दे को कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने उठाया। इस पर सभापति ने टिप्पणी करते हुए कहा, “मुझे इस बात की चिंता है कि यह घटना घटित हुई और तुरंत सामने नहीं आई। अगर यह किसी राजनेता के साथ हुआ होता तो उसे तुरंत निशाने पर लिया जाता, जबकि नौकरशाह या उद्योगपति के मामलों में तत्काल प्रतिक्रिया दी जाती है।”

उन्होंने यह भी कहा कि एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो पारदर्शी, जवाबदेह और प्रभावी हो। सभापति धनखड़ ने स्पष्ट किया कि देश में एक सशक्त और पारदर्शी तंत्र की आवश्यकता है, ताकि भ्रष्टाचार और गलत कार्यों का सामना किया जा सके और न्यायिक संस्थाओं की जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।

यह बयान भारतीय न्यायपालिका में जवाबदेही की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, और इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि संसद ने पहले इस मुद्दे को गंभीरता से लिया था। धनखड़ का यह बयान न्यायिक सुधारों के प्रति संसद और सरकार की ओर से गंभीरता को उजागर करता है।

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