KNEWS DESK- यूपी के मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में हिंदू पक्ष ने दलील दी कि विवादित संपत्ति के स्वामित्व के संबंध में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड या ईदगाह की इंतेजामिया कमेटी ने आज तक कोई दस्तावेज नहीं दिया है। हिंदू पक्ष की तरफ से ये भी कहा गया कि उस संपत्ति में उनके (सुन्नी बोर्ड और इंतेजामिया कमेटी) नाम कोई बिजली का बिल तक नहीं है और वे अवैध तरीके से बिजली का इस्तेमाल कर रहे हैं। हिंदू पक्ष ने इस मामले में बिजली विभाग से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और इंतेजामिया कमेटी के खिलाफ शिकायत की है।
कुछ देर सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 20 मई, 2024 तय की। इस मामले की सुनवाई जस्टिस मयंक कुमार जैन की अदालत कर रही है। इससे पहले बुधवार को मुस्लिम पक्ष के वकील तसलीमा अजीज अहमदी ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कहा था कि उनके पक्ष ने 12 अक्टूबर, 1968 को एक समझौता किया था, जिसकी पुष्टि 1974 में निर्णित एक दीवानी वाद में की गई।
उन्होंने कहा था कि समझौते को चुनौती देने की समय सीमा तीन साल है, लेकिन वाद 2020 में दायर किया गया, इस तरह से मौजूदा वाद समय सीमा से बाधित है। अहमदी ने दलील दी थी कि ये वाद शाही ईदगाह मस्जिद के ढांचे को हटाने के बाद कब्जा लेने और मंदिर बहाल करने के लिए दायर किया गया है। उन्होंने कहा कि वाद में की गई अपील दिखाती है कि वहां मस्जिद का ढांचा मौजूद है और उसका कब्जा प्रबंधन समिति के पास है।
हिंदू पक्ष ने दलील दी थी कि ये संपत्ति एक हजार साल से ज्यादा समय से भगवान कटरा केशव देव की है और सोलहवीं शताब्दी में भगवान कृष्ण के जन्म स्थान को ध्वस्त कर ईदगाह के तौर पर एक चबूतरे का निर्माण कराया गया था। हिंदू पक्ष की तरफ से कहा गया कि 1968 में कथित समझौता कुछ और नहीं है, बल्कि सुन्नी सेंट्रल बोर्ड और इंतेजामिया कमेटी की तरफ से की गई धोखाधड़ी है। इसलिए समय सीमा की बाध्यता यहां लागू नहीं होती है।
हिंदू पक्ष ने दलील दी कि 1968 का कथित समझौता वादी के संज्ञान में 2020 में आया और संज्ञान में आने के तीन साल के अंदर ये वाद दायर किया गया है।
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