मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और महत्व
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत भव्य है। वे सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके दाहिने हाथ में जप माला तथा बाएं हाथ में कमंडल है। उनका पूजन करने से भक्तों के अंदर जप और तप की शक्ति बढ़ती है। मां ब्रह्मचारिणी यह सिखाती हैं कि परिश्रम से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है।
कथा के अनुसार, नारद जी के उपदेश से मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई वर्षों तक कठिन तप किया। उनके तप की कठिनाई को देखते हुए उन्हें ‘तपश्चारिणी’ भी कहा जाता है। मां ने हजारों वर्षों तक जमीन पर गिरे बेलपत्रों को खाकर भगवान की आराधना की, जिससे उन्हें ‘अपर्णा’ नाम भी प्राप्त हुआ।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
- स्नान और शुद्धता: सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- स्थान की पवित्रता: पूजा के स्थान को स्वच्छ करें और वहां एक चौकी स्थापित करें।
- मूर्ति स्थापना: मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- दीप और फूल: पूजा के स्थान पर दीप जलाएं और वट वृक्ष के फूल अर्पित करें।
- भोग का चढ़ावा: मां को चीनी या गुड़ का भोग लगाएं।
करें इन मंत्रो का जाप
- ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
- या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
- दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
भोग का महत्व नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को चीनी या गुड़ का भोग अर्पित करना विशेष महत्व रखता है। इसके अलावा, गुड़ या चीनी से बनी मिठाई भी चढ़ा सकते हैं, जिससे मां भक्तों को दीर्घायु का आशीर्वाद देती हैं।