आंबेडकर जयंती पर BJP-सपा के बीच सियासी लड़ाई तेज, उत्तरप्रदेश में किसके साथ दलित?

KNEWS DESK-  उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों दलित मतदाताओं को लेकर सियासी सरगर्मियां चरम पर हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा राजपूत योद्धा राणा सांगा को ‘गद्दार’ कहने पर उपजे विवाद ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है। इस विवाद ने दलितों की राजनीतिक अहमियत को और उजागर कर दिया है, जिनकी आबादी राज्य में करीब 21 प्रतिशत है। अब बीजेपी और सपा दोनों ही इस बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की जद्दोजहद में जुट गई हैं।

सपा सांसद रामजी लाल सुमन के बयान के बाद क्षत्रिय समुदाय खासतौर पर करणी सेना जैसे जाति-आधारित संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। 26 मार्च को करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने आगरा स्थित सांसद सुमन के आवास में तोड़फोड़ की। सपा ने इस घटना को लेकर बीजेपी पर करणी सेना को संरक्षण देने का आरोप लगाया। अखिलेश यादव ने इसे पीडीए—पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक—गठबंधन पर हमला करार दिया।

इस विवाद के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘आंबेडकर सम्मान अभियान’ की शुरुआत की है, जो दो हफ्तों तक चलेगा। इस अभियान के तहत बीजेपी कार्यकर्ताओं को दलित समुदाय से जुड़ने और केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं की जानकारी लोगों तक पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया है। सीएम योगी ने कहा कि विपक्ष दलितों को गुमराह कर रहा है और उनके साथ छल कर रहा है। उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे दलितों के बीच जाकर ‘सच्चाई’ सामने रखें।

दूसरी ओर, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इटावा में डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया और बाबा साहेब के विचारों को आमजन तक पहुंचाने की बात कही। उन्होंने बसपा संस्थापक कांशीराम की भूमिका को याद करते हुए दावा किया कि सपा ने ही उन्हें लोकसभा तक पहुंचाया था। वहीं, बसपा के पूर्व नेता और संस्थापक सदस्य दद्दू प्रसाद ने हाल ही में सपा का दामन थाम लिया, जिससे पार्टी को दलित समर्थन मजबूत होने की उम्मीद है।

अखिलेश यादव ने हाल में संविधान पर आधारित एक कार्यक्रम में जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी संविधान को बदलने की किसी भी कोशिश का विरोध करेगी। उन्होंने डॉ. आंबेडकर को महान अर्थशास्त्री और समाज सुधारक बताते हुए कहा कि उनका जीवन अनुभव ही संविधान के निर्माण में मार्गदर्शक बना।

चुनावी दृष्टिकोण से देखें तो 2014 के बाद से बीजेपी को उत्तर प्रदेश में ओबीसी और दलित समर्थन से लगातार जीत मिलती रही है। वहीं, सपा अब इन वर्गों को साथ लाकर विपक्षी मोर्चा मजबूत करने की कोशिश में है। आगरा से लेकर लखनऊ तक दोनों दल दलितों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सक्रिय हैं।

इस तरह, सपा और बीजेपी के बीच दलित वोट बैंक को लेकर चल रही राजनीतिक शह-मात की यह लड़ाई आने वाले चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। यूपी की सियासत में दलित मतदाता अब केवल संख्या नहीं, बल्कि सत्ता की चाभी बनते जा रहे हैं।

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