डिजिटल डेस्क- संसद के शीतकालीन सत्र में बुधवार को AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने SIR (Special Intensive Revision) पर चर्चा के दौरान कई महत्वपूर्ण मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाया। उन्होंने चुनाव आयोग, संसद में मुस्लिम प्रतिनिधित्व, तथा मताधिकार से जुड़े नियमों पर तीखी टिप्पणी की। ओवैसी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग संसद द्वारा बनाए गए नियमों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि आयोग ने पब्लिक डोमेन में आदेश दिए बिना ही 35 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए हैं, जो मताधिकार को प्रभावित करने वाली गंभीर कार्रवाई है। ओवैसी ने मुस्लिम समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर भी गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जब मुस्लिम-बहुल वायनाड गैर-मुस्लिम सांसद चुन सकता है, तो रायबरेली, अमेठी या इटावा जैसे इलाकों से मुस्लिम उम्मीदवार क्यों नहीं चुन सकते? उन्होंने बी.आर. अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि राजनीतिक शक्ति सामाजिक प्रगति की कुंजी है, लेकिन आज भारतीय संसद में मुस्लिम सांसदों की उपस्थिति बेहद कम है। उन्होंने यह भी कहा कि सत्तारूढ़ दल में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है और खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली पार्टियों में भी मुस्लिम प्रतिनिधित्व नगण्य है।
धार्मिक आधार पर मतदाता सूची में हो रही है हेरफेर
SIR प्रक्रिया पर बोलते हुए ओवैसी ने इसे ‘बैकडोर NRC’ करार दिया। उनका आरोप है कि धार्मिक आधार पर मतदाता सूची में हेरफेर हो रहा है और लाखों लोगों के नाम हटाकर उन्हें मताधिकार से वंचित किया जा रहा है। ओवैसी ने कहा कि यह न सिर्फ संसदीय कानून का उल्लंघन है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के भी खिलाफ है। उन्होंने चुनाव आयोग पर अपनी संवैधानिक शक्तियों के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया। अपने भाषण में ओवैसी ने जर्मनी की तर्ज पर संसदीय व्यवस्था अपनाने की मांग दोहराई। उन्होंने कहा कि भारत को ऐसी प्रणाली की जरूरत है जिसमें राजनीतिक प्रतिनिधित्व अधिक संतुलित हो और जवाबदेही मजबूत बने।
वतन हमारा है, हम इसे छोड़कर नहीं जाएंगे…
उन्होंने यह भी अपील की कि सर्वसम्मति से वोट के अधिकार को मूल अधिकार घोषित किया जाए ताकि किसी भी नागरिक का मताधिकार कभी खतरे में न पड़े। ओवैसी ने वंदे मातरम को लेकर उठी बहस पर सफाई देते हुए कहा कि मुसलमान अपनी मां की पूजा नहीं करते, न ही कुरान की पूजा करते हैं। इस्लाम में अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं होती। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि मुसलमान देशभक्त नहीं—“वतन हमारा है, हम इसे छोड़कर नहीं जाएंगे,”। उन्होंने कहा कि वफादारी का सर्टिफिकेट मांगना गलत है।