KNEWS DESK- लंबे इंतजार के बाद, केंद्र सरकार आज शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पेश करने जा रही है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल दोपहर करीब 12 बजे इस बिल को लोकसभा में पेश करेंगे। इस बिल के जरिए भारत में एक ही समय में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने की योजना बनाई जा रही है, ताकि चुनाव प्रक्रिया को सरल और खर्च बचाने वाला बनाया जा सके।
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने सांसदों के लिए व्हिप जारी कर दिया है, जिससे पार्टी के सभी सदस्य सदन में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहेंगे। सरकार को इस बिल को लेकर अपने घटक दलों का समर्थन प्राप्त है, जबकि विपक्षी दलों ने विरोध करने की योजना बनाई है। सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा में इस बिल को लेकर भारी हंगामे की संभावना जताई जा रही है।
क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन बिल का मकसद?
इस प्रस्तावित कानून के मुताबिक, भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएंगे। यह कदम देश में चुनावी प्रक्रिया को व्यवस्थित करने और सरकारी खर्च को कम करने के लिए उठाया जा रहा है। इसके पहले चरण में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे। इसके बाद, दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव कराए जाने की योजना है, जो पहले चरण के चुनावों के 100 दिन के भीतर होंगे।
विपक्ष का विरोध और सरकार की तैयारी
इस बिल को लेकर विपक्ष के बीच असहमति है, और कई दल इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर डालने वाला मानते हैं। उनका कहना है कि इससे छोटे दलों को नुकसान हो सकता है और केंद्र सरकार के प्रभाव में राज्य सरकारें आ सकती हैं। इसके बावजूद, सरकार इस बिल को लोकसभा में पास कराने के लिए पूरी तरह तैयार है। यदि किसी सदस्य को इस बिल में मौजूद क्लॉज और तथ्यों पर आपत्ति होती है, तो सरकार इसे संसदीय समिति को भेज सकती है।
नए चुनावी मॉडल पर चर्चा
भारत में वन नेशन, वन इलेक्शन का विचार लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति ने भी इस विचार को समर्थन दिया था। सितंबर महीने में केंद्रीय कैबिनेट ने इसके लिए आवश्यक प्रस्तावों को मंजूरी दी थी। अब, बिल को लोकसभा में पेश करने के बाद, यह देखना होगा कि इसे कितनी समर्थन प्राप्त होती है और विपक्ष इस पर कितना विरोध करता है।
इस बिल के लागू होने से भारतीय राजनीति और चुनावी प्रक्रिया में बड़े बदलाव की संभावना है। जहां सरकार इसे देश की विकासात्मक प्रक्रिया के लिए जरूरी मानती है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र के मूल्यों से समझौता करने जैसा देखता है।
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